पोर्न साइट : लगाम लगाना बड़ी चुनौती
दुनिया भर में रेप की घटनाएं बढ़ रही हैं क्योंकि इंटरनेट पोर्न सारी हदें सारी हदें पार कर चुका है.
पोर्न साइट : लगाम लगाना बड़ी चुनौती |
हमारे देश में घटित कई यौन अपराधों में साबित हुआ है कि अपराधी पोर्न देखने की लत के शिकार थे. दिल्ली गैंगरेप (2012) की घटना में भी शामिल अपराधियों ने मोबाइल पर पोर्न तस्वीरें और वीडियो देखे थे और उसके बाद भी अनिगनत वारदातों में यही तथ्य निकलकर सामने आया था. शायद यही चिंता है कि इधर सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट के प्रमुख सर्च इंजन गूगल से पूछा है कि क्या उस पर ऐसे वीडिया अपलोड करने से लोगों को रोका जा सकता है, जो अश्लील और यौन हिंसा से जुड़े होते हैं?
कायदे से तो यह एक इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी के आंतरिक तंत्र से जुड़ा सवाल है और वह इसके लिए शत्रे मानने को तैयार नहीं हो सकती है, लेकिन गूगल ने बिना किसी शर्त के ऐसे मुद्दों पर सहयोग करने का रु ख अदालत में दिखाया है. हालांकि, गूगल के मुताबिक इसमें मुश्किल यह है कि उसके लिए पहले से यह बताना संभव नहीं है कि उस पर अपलोड की जा रही कोई सामग्री आपत्तिजनक है या नहीं. हालांकि, इस बारे में कोई शिकायत करता है, तो ऐसी सामग्री रोकी जा सकती है. लेकिन इंटरनेट पर अश्लील सामग्री सिर्फ इंजनों के जरिये नहीं आ रही है बल्कि अनिगनत पोर्न वेबसाइटें हैं, जहां ऐसी चीजें मिलती हैं और इन्हें भी सरकार या अदालत अब तक रोक नहीं पाई है.
तीन साल पहले वर्ष 2014 में जब इस बारे में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी, तो उसके जवाब में कोर्ट ने कहा था कि इन पर रोक लगा पाना उसके लिए संभव नहीं होगा. इसकी वजह यह है कि इंटरनेट पर ऐसी करीब 4 करोड़ वेबसाइटें हैं. सरकार जब एक वेबसाइट को बंद करती है, तो दूसरी खुल जाती है. यौन अपराधों के उकसावे में पोर्न सामग्रियों की कितनी भूमिका रहती है, इसे लेकर देश में वर्ष 2014 में एक सर्वेक्षण कराया गया था. मैसूर की ‘रेस्क्यू’ नामक संस्था ने गोवा के 10 कॉलेजों के 200 छात्रों के बीच सर्वे कराए. इनमें दो अहम बातों का खुलासा हुआ था. पहला, यह कि पोर्न देखने वाले 76 फीसद युवा रेप करना चाहते हैं और दूसरा, कम-से-कम 40 फीसद युवा नियमित तौर पर पोर्न सामग्री देखते हैं.
इस सर्वेक्षण में कई और गंभीर बातें स्पष्ट हुई थीं. जैसे जो युवा पोर्न देख रहे हैं, उनमें से 50 फीसद हिंसक पोर्न देखते हैं और उनकी यह लत लगातार बढ़ती जाती है. दावा किया जाता है कि दुनिया की प्रमुख पोर्न वेबसाइटों को दुनिया में हर महीने पांच अरब बार खोला जाता है. इसी तरह का एक औसत यह है कि दुनिया में प्रति सेकेंड 30 हजार लोग इंटरनेट पर अश्लील साहित्य खोज या देख-पढ़ रहे होते हैं.
एक तरफ, इससे पोर्न सामग्री से जुड़े व्यवसाय ने बड़ी इंडस्ट्री का रूप ले लिया, तो दूसरी तरफ अपराधी मानसिकता के लोगों से लेकर छोटे बच्चों तक ऐसी सामग्री पहुंचने का खतरा पैदा हो गया. यह बदलाव कोई समस्या नहीं बनता, यदि ऐसी चीजें बच्चों के हाथ नहीं पहुंचतीं और इनसे अपराधियों में यौन हमले करने का दुस्साहस पैदा होता. लेकिन स्पष्ट हुआ है कि ये दोनों खतरे तेजी से बढ़े हैं, इसीलिए इंटरनेट पोर्न पर पाबंदी की मांग समय-समय पर उठती रही है.
ऐसे में प्रश्न है कि सरकार यह काम आखिर क्यों नहीं कर रही है? गौरतलब है कि पड़ोसी देशों चीन-पाकिस्तान के अलावा दक्षिण कोरिया, मिस्र, रूस आदि देशों में इंटरनेट पोर्नोग्राफी को गैरकानूनी घोषित कर रखा है और वे ऐसी वेबसाइटों पर प्रतिबंध भी लगाते हैं.
तीन साल पहले चीन ने ऑनलाइन अश्लीलता के खिलाफ अभियान चलाकर 422 वेबसाइटों को प्रतिबंधित कर दिया था. हालांकि, ऐसे प्रतिबंधों के विरोधियों का तर्क है कि जो लोग पोर्न देखना चाहते हैं, उन्हें इसके विकल्प सीडी-डीवीडी के वीडियो रूप में आसानी से उपलब्ध हैं.
इसके अलावा प्रतिबंध के बावजूद उन देशों में यौन अपराधों में भी कोई खास कमी नहीं आई है. पर यहां अहम बात यह है कि अश्लील सामग्री की रोकथाम के उपाय करने वाले देशों की सरकारों ने कम से कम इस बारे में यह एक सदिच्छा तो दर्शाई कि उन्हें समाज के नैतिक पतन की चिंता है.
क्या हमारी सरकार इतना भी नहीं कर सकती है? गोवा की संस्था रेस्क्यू ने ‘के-9’ नामक एक सॉफ्टवेटर के इस्तेमाल से अश्लील सामग्री की पूरी तरह रोकथाम की सिफारिश की थी. स्पष्ट है कि ऐसे कई उपाय मौजूद हैं, ऐसे में यदि सरकार चाहेगी तो अश्लील सामग्री के प्रचार-प्रसार और उसके कारण होने वाले अपराधों की दर में निश्चित कमी लाई जा सकती है.
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