छोटे किसानों को ध्यान में रखकर नीति बने

Last Updated 26 Jun 2016 04:43:06 AM IST

बीस जून 2016 को भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार भारत विदेशी पूंजी निवेश के मामले में दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्था हो गई है.


छोटे किसानों को ध्यान में रखकर नीति बने

मोदी सरकार ने लगभग तमाम क्षेत्रों को विदेशी पूंजी निवेश के लिए खोल दिया है. यहां तक कि खुदरा बाज़ार में विदेशी पूंजी निवेश, जिसका भारतीय जनता पार्टी संसद से लेकर सड़क तक विरोध करते नहीं थकती थी, को भी तकरीबन पूरी तरह खोल दिया गया है. वर्ष 2016-17  के बजट प्रस्ताव में वित्त मंत्री अरु ण जेटली ने भारत में पैदा और निर्मित खाद्य पदार्थों की मार्केटिंग में 100 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश का प्रस्ताव किया था. अब इस प्रस्ताव को नीतिगत तौर पर आगे बढ़ाते हुए कैबिनेट ने भारत में पैदा निर्मित खाद्य पदार्थों की खुदरा बिक्री में भी 100 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश की घोषणा कर दी है. यह प्रावधान इ-कॉमर्स के लिए भी किया गया है.

साथ ही, विदेशी कंपनियों की मांग को देखते हुए सिंगल ब्रांड रिटेल में भी लोकल सोर्सिग नॉर्म्स में ढील दी गई है. नियमों में बदलाव करते हुए सरकार ने सिंगल ब्रांड रिटेलर को लोकल सोर्सिंग से तीन साल के लिए मोहलत दी है. अगर सिंगल ब्रांड रिटेलर उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है, तो उसे तीन साल के बाद पांच और साल के लिए भी मोहलत मिलने वाली है.

गौरतलब है कि भारत ने थोक व्यापार, बिज़नेस से बिजनेस इ-कॉमर्स और सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश की इजाजत पहले ही दे रखी है. मल्टी-ब्रांड खुदरा बाजार में ही सिर्फ  51 प्रतिशत तक विदेशी पूंजी निवेश की इजाजत है, जिसका भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष में रहते हुए पुरजोर विरोध किया था. गाहे-बगाहे अब भी पार्टी के कई वरिष्ठ नेता और यहां तक कि कई केंद्रीय मंत्री भी मल्टी-ब्रांड खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी निवेश के विरोध में बयान देते रहते हैं, और विश्वास दिलाते हैं कि मोदी सरकार मल्टी-ब्रांड खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी निवेश की इजाजत नहीं देगी.

विरोधाभासी बयानबाजी
नेशनल सैंपल सर्वे, 2013 के अनुसार भारत में तकरीबन 8 करोड़ लोग सीधे तौर पर व्यापार से जुड़े हैं. शायद यह संख्या वर्तमान सरकार और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को इस प्रकार के बयान देने के लिए प्रेरित करती हो. लेकिन दूसरी तरफ संपन्न किसानों का एक समूह अपने माल के लिए नए बाजार तलाशना चाहता है. पंजाब का चुनाव सिर पर है, और पंजाब के धनी किसानों को मद्देनजर रखते हुए भी शायद खाद्य पदार्थों के खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी के लिए रास्ता साफ किया गया हो. मगर सरकार की यह घोषणा उलटवार भी कर सकती है क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं, और 8 करोड़ भारतीय व्यापारियों में लगभग 1 करोड़ व्यापारी उत्तर प्रदेश में ही हैं.

जापान की ई-कॉमर्स में दिलचस्पी
साथ ही, हमें यह ध्यान रखना होगा की वैश्विक स्तर पर हाल के दिनों में खुदरा बाजार खासकर ई-कॉमर्स को लेकर काफी हलचल हुई है. दिसम्बर, 2015 में आयोजित विश्व व्यापार संगठन की 10वीं मंत्रिमंडलीय बैठक में 1998 की ई-कॉमर्स की प्रस्तावना पर काम तेज करने की सहमति बनी. हाल ही में जून के प्रथम सप्ताह में विश्व व्यापार संगठन की काउंसिल ने 2003 के बाद पहली बार ई-कॉमर्स पर चर्चा की. जून के मध्य में एक और महत्वपूर्ण विकास हुआ. न्यूजीलैंड के ऑकलैंड शहर में रिजनल कोम्प्रेहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप की समझौता वार्ता एक हफ्ते तक चली और इसमें ई-कॉमर्स एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा.
काउंसिल में भारत भी वार्ता कर रहा है. वार्ता में जापान की ई-कॉमर्स में शुरू से ही दिलचस्पी रही है. इसने समझौता में ई-कॉमर्स पर प्रतिबद्धता निश्चित करने के लिए काफी दबाव बनाया हुआ है. गौरतलब है कि जापान की निवेशक बैंक, सॉफ्ट बैंक, ने भारत की एक ई-कॉमर्स कंपनी में बड़ी रकम निवेश कर रखी है. भारत का ई-कॉमर्स व्यापार बहुत तेजी से बढ़ रहा है. पिछले दो वर्षो में यह दोगुना होकर 5 बिलियन डॉलर सालाना का हो चुका है, जबकि जापान में अब बहुत ज्यादा विकास की संभावना नहीं है, और इसीलिए जापानी कंपनियां भारत जैसा उभरता बाजार खुलवाने की भरसक कोशिश में लगी हैं. सिंगल ब्रांड रिटेलर को लोकल सोर्संिग में दी गई मोहलत तो सीधे तौर पर एप्पल जैसी कंपनियों की मांग स्वरूप है. स्थानीय खाद्य पदार्थों, जिनका उत्पादन और निर्माण भारत में हुआ हो, को लेकर अब विदेशी पूंजी निवेशक सिंगल, मल्टी और ऑनलाइन हर तरीके से व्यापार कर सकते हैं. इस फैसले के दूरगामी असर न सिर्फ  हमारे व्यापारियों के रोजगार पर हो सकते हैं, बल्कि लघु एवं कुटर उद्योगों विशेषकर खाद्य प्रसंस्करण की इकाइयों और खाद्य उत्पादक किसानों को भी क्षति पहुंचा सकते हैं.

छोटे किसानों का भी रखें ध्यान
सर्वविदित है कि बड़ी कंपनियां छोटे किसानों को अपने साथ नहीं जोड़ पाती हैं. उलटे छोटे किसानों को उपलब्ध स्थानीय बाजार से भी उन्हें बेदखल करने की क्षमता रखती हैं. किसानों की आजीविका के साथ ही इस फैसले का असर भोजन की पौष्टिकता, खाद्य सुरक्षा, स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर होगा. खाद्य पदार्थों को बहुत ज्यादा प्रसंस्कृत करने की प्रक्रिया में उसकी पौष्टिकता कम होती है. खाने-पीने की चीजें ज्यादा दिनों तक चल सकें, इस फेर में कंपनियां उनमें हानिकारक रसायन मिलाती हैं. हवाबंद पैकेजिंग करतीहैं. उन्हें खास ताप और कई बार तो रेडिएशन से गुजारती हैं. प्रसंस्करण की प्रक्रिया में प्राय: खाद्य पदार्थ अपना मूल स्वरूप बैठते हैं. उनकी पौष्टिकता कम हो जाती है, और जरूरी विटामिन और मिनरल की तुलना में कैलॉरी ज्यादा हो जाती है. सरकार को खाद्य पदार्थों में व्यापार की इजाजत सोच-समझ कर देनी चाहिए. बेहतर तो यह होगा कि छोटे किसानों को ध्यान में रखकर नीति बने. उनके माल को बाज़ार और उन्हें माल का उचित दाम दिलाने की तरफ ध्यान दिया जाए.

धर्मेंद्र कुमार
निदेशक, इंडिया, एफडीआई वॉच


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