टू-दि-प्वाइंट : बिजली दर्शन
बंदाज्ञान ले, तो हर सिचुएशन से ज्ञान निकल आता है. आती-जाती बिजली से आया हुआ ज्ञान इस प्रकार है-
आलोक पुराणिक |
बैठ अंधेरे धैर्य धर, ठंडा पानी पीव
देख परायी बिजली, मत ललचावे जीव
भावार्थ-हे मानव, अपने अंधेरे में धैर्य रख, दूसरे के यहां आती बिजली को देखकर तू ललचा मत. भारत में मानवजीवन की तमाम पीड़ाओं में से एक पीड़ा यह है कि अपने घर में बिजली न रहे, पर दूसरों के यहां भी न आए. असली पीड़ा तो तब होती है, जब तेरे यहां नहीं आ रही है, पर ठीक तेरे पड़ोस में बिजली आ रही है.
अपने अंधेरे कमरे में बैठकर तू अपने पड़ोस के बिजलीशुदा-रोशनीयुक्त कमरे को बिना ईष्र्या के झेलने की क्षमता अगर हासिल कर ले, तो समझ तू प्रज्ञा को उपलब्ध हुआ. ऐसी प्रज्ञा, जो मानव को सहज प्राप्य नहीं है.
आना है तो जाना है, बिजली हो या इंसान
पल दो पल का साथ है, सच इसको ही मान
भावार्थ-हे प्राणी इंसान बिजली हो या इंसान, जो आया है, उसे जाना ही है. इंसान आते ही चला जाये, तो इसे अकाल-मृत्यु कहते हैं, पर बिजली की ऐसी गति को नॉर्मल ही कहा जाता है, खास तौर पर उत्तर भारत में.
प्रख्यात शायर-गीतकार स्वर्गीय साहिर लुधियानवी ने लिखा है-पल-दो-पल का साथ हमारा, पल-दो-पल के याराने हैं, इस मंजिल पर मिलनेवाले, उस मंजिल पर खो जाने हैं. हर खुशी कुछ देर की मेहमान है पूरा कर ले जो अरमान है. मतलब पल-दो-पल का साथ है, बिजली के साथ पल-दो-पल का याराना ही मान.
हर खुशी कुछ देर की मेहमान है का आशय है कि ये बिजली ज्यादा देर खुशी ना देनेवाली है, पूरा कर ले दिल में जो अरमान है. ठंडी आइसक्रीम फ्रिज से निकालकर निपटा ले. किस घड़ी बिजली चली जाए, ऐसे भाव में लंबे समय तक जीनेवाले प्राणी जीवन और बिजली की क्षण-भंगुरता से एकदम वाकिफ हो जाता है और वह संन्यस्त भाव को प्राप्त हो जाता है.
विशेष-नोट किया जाए कि सबसे ज्यादा साधु-संन्यस्त बंदे उन राज्यों में ही पाए जाते हैं, जहां बिजली गायब होती है. हम सिर्फ यूपी-बिहार की ही बात नहीं कर रहे हैं.
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