ये दुनिया ऑनलाइन है

Last Updated 29 Nov 2015 01:18:55 AM IST

ये दुनिया ऑनलाइन होने जा रही है. लगता है कि हमारी विज्ञापन मार्केट में भी उसी की तैयारी चल रही है.




ये दुनिया ऑनलाइन है

एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया की बात कर रही है, वहीं स्मार्ट शहर बनाने उनके वाईफाई युक्त होने की कर रही है.

जुकरबर्ग आकर जा चुके हैं. कई डिजिटल क्रांति करने वाली विदेशी कंपनियां हिंदोस्तानी मार्केट को टटोल रही हैं. ऐसे ही वक्त में चैनलों में एक नया विज्ञापन आने लगा है, जो ऑनलाइन कामकाज को पॉपुलर करने के लिए उसके प्रति हर आदमी की दिलचस्पी जगाने को बनाया गया लगता है. यह विज्ञापन उन बहुत से लोगों की उस झिझक को दूर करने वाला लगता है,  जो ऑनलाइन होने से संकोच करते हैं. विज्ञापन का एक टुकड़ा दिखाता है : एक मामूली हैसियत का लड़का एक गली में जा रहा है कि उसे धमकाने-पीटने के लिए हाथ में जंजीर और डंडा लिए दो तीन गुंडेनुमा लोग आते हैं, उसे घेरने की कोशिश करते हैं, लेकिन उससे पहले कि वे कुछ करें; लड़का उनको बिना डरे चैंलेज करता है-आना है तो ऑनलाइन आ जा! इस ‘ऑनलाइन आ जा’ की धमकी को  सुनकर वे गुंडे एकदम हड़बड़ा जाते हैं, और लड़का मजे में आगे बढ़ जाता है. अगला दृश्य दफ्तर का है, जिसमें एक मामूली-सा काम करने वाला युवा बाबू अपने बॉस से दिए कागज लेने आता है, तो केबिन में बैठा बॉस कागज फेंकते हुए चीख कर कहता है, आना है तो ऑनलाइन आ जा!

ऑनलाइन का कमाल आमिर प्रकरण में भी देखने को मिला. हमारे मुख्यधारा के मीडिया ने आमिर पर पड़ी ऑनलाइन की मार को उतना जगह नहीं दी जितनी बयानों से पड़ी मार को दी. उसे लगा कि अब भी लेग टीवी के बयानों और खबरों से ही जीतते हारते हैं जबकि आमिर की कहानी का एक पहलू यह भी उभर कर आया कि अगर आमिर एक बड़ी ऑनलाइन शापिंग कंपनी के ब्रांड एंबेसेडर न होते, स्पांसर न होते तो इतनी जल्दी विवाद न थमता.

यों आमिर खान ने जो बोला, जितना बोला उसमें कुछ भी ऐेसा नहीं था, जो आमिर को इस तरह से पाकिस्तान जाने के लिए या अहसान फरामोश होने के लिए ताना दिया जाता.  धिक्कारा जाता. ऑनलाइन देशभक्तों ने ट्विटर पर, फेसबुक पर उनको इस कदर धिक्कारा, धिक्कारा ही नहीं, उनकी स्पांसरशिप पर सबसे ज्यादा प्रहार किया और ऑनलाइन जाकर उनके ग्राहकों से आग्रह किया गया कि चूंकि आमिर ने ऐसा वैसा कहा है, इसलिए ऑनलाइन कंपनी से अपना नाता तोड़ लें. पहली बार ‘वाट्सएप’ के प्रचार की जरूरत दिखी, उसकी मारकता दिखी. इसकी खबर कुछ चैनलों ने दी. एक ने बताया कि ऑनलाइन कंपनी के नौ लाख ग्राहक उससे हटे हैं.

अगले रोज आमिर ने अपने बयान पर कुछ सफाई देकर सारे विवाद को शांत करने की कोशिश की, लेकिन जितना नुकसान होना था, हो चुका था. एक चैनल पर नुकसान की बाबत बहस चली. बात साफ हुई कि जो ब्रांड एंबेसडरी करते हैं, आइकान होते हैं, ब्रांडों की स्पांसरशिप करते हैं, वे सबसे ज्यादा कमजोर और ‘बेध्य’ होते हैं. जरा सा भी कुछ ऐेसा बोलते हैं, जिससे उनकी छवि को नकारात्मकता मिल सकती है, तो उससे उनके स्पासंर्ड ब्रांड को नुकसान हो सकता है. इसलिए उन्हें ज्यादा नहीं बोलना चाहिए. विवाद तो शांत हो गया, लेकिन ऑनलाइन मार की कसक रह गई. भले आमिर न बताएं. सच यह है कि नुकसान हुआ ही होगा. एक चैनल ने इसे ‘ऑनलाइन कॉरपारेट वार’ भी कहा. 

ऐसा ही एक वाकया और याद आता है. यह अमिताभ के जमाने का है जो शायद  उनके बेटे की शादी के दौरान  हुआ था. हमें इस समय विवाद का कारण तो याद नहीं आ रहा. मगर इतना याद है कि विवाद के होते ही इकनामिक टाइम्स के एक टिप्पणीकार ने उनके ब्रांड स्पांसरशिप की साख को देखते हुए टिप्पणी की थी कि विवाद बताता है कि आइकनों को विवादों से बचकर रहना होता है. जिन ब्रांडों के प्रतीक होते हैं, वे सारे बाजार के होते हैं. ग्राहक के लिए उनको हमेशा ‘सर्वप्रिय’ दिखना होता है. संभल कर चलना पड़ता है जबकि उनके अ-मित्र उनको हरदम ऐसे विवादों में घसीटने को  तैयार रहते हैं ताकि उनकी छवि पर आंच आए और उनका नुकसान हो जाए ताकि वे फायदा उठा सकें.

अमिताभ के विवाद के जमाने में तो सिर्फ टीवी था. ऑनलाइन खेल नहीं था. आज ऑनलाइन है, और इसीलिए हर चीज एक ही समय में ग्लोबल खेल का हिस्सा है. पता ही नहीं चलता कि कब कौन कहां से क्या हमला कर रहा है. इसीलिए दलों को आजकल अपने नेताओं की छवि को बनाए-बचाए रखने के लिए ऑनलाइन हमलों को बेकार करने के लिए ऑनलाइन कार्यकर्ताओं की सेना लगानी पड़ती है. उनकी तैयारी करानी पड़ती है. तब जाकर छवि को बचाया जाता है, प्रतीक को बचाया जाता है. उक्त विज्ञापन का वह लड़का जिस आसानी से गुंडों को धमका लेता है, वह बताता है कि ऑनलाइन डंडों की चोटों से कहीं ज्यादा मारक है. आज की राजनीति ऑनलाइन है, विज्ञापन ऑनलाइन हैं, ग्राहक ऑनलाइन हैं. इसके अपने फायदे और नुकसान हैं. उनकी बाबत कभी आगे बात करेंगे.

ये मेरी आपकी दिल्ली है, जो मीडिया की राजधानी है.  चैनलों की राजधानी है. यहीं एडीटर गिल्ड का दफ्तर है. यहीं अखबारों की सबसे बड़ी सोसाइटी का दफ्तर है. यहीं सबसे बड़ी संख्या में पत्रकार रहते हैं. यहां एक से बढ़िया एक गाड़ियां दिखती हैं. बड़ी लंबी विदेशी ब्रांड फर्राटे से दौड़ती भागती एक से एक चमकदार गाड़ी. चमचम करतीं गाड़ियां. एक गाड़ी दूर से एक पहाड़ी की सड़क पर दौड़ती चढ़ती चली आती है. उसमें पूरा परिवार बैठा है. गाड़ी ठहरती है तो उसमें से पूरा प्रिवार उतरता है. एक बच्चा और माता-पिता. वे यहां पिकनिक मनाने आए हैं. गाड़ी चली होगी तो तेल भी फुंका होगा. तेल फुंका होगा तो धुआं भी बना होगा. वह आसमान में छाया भी होगा. स्मॉग बना होगा.

सुधीश पचौरी
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment