अहंकार का तकनीकी चेहरा सेल्फी

Last Updated 20 Dec 2014 02:29:58 AM IST

नव के अंदर अपनी सुंदरता या विशेषताओं का दिखावा करने की नैसर्गिक प्रवृत्ति रही है. यह होड़ उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है.




अहंकार का तकनीकी चेहरा सेल्फी

जब से दुनिया में मोबाइल क्रांति हुई है और फेसबुक-ट्विटर जैसे सोशल मीडिया के कथित तौर-तरीके अस्तित्व में आए हैं, लोगों में दिखावे की प्रवृत्ति हद से ज्यादा बढ़ गई है. पहले लोग अपनी सुंदरता, अमीरी या फिर किसी अन्य विशेषता का प्रदर्शन करते थे पर अब बिना किसी औचित्य के अपनी फोटो खींचना और सोशल मीडिया पर कोई कमेंट करना जैसे फैशन हो गया है. स्मार्ट फोनों में सेल्फी (सामने के कैमरे से स्वयं अपनी फोटो लेना) की सुविधा के बाद से तो लोगों की शो-ऑफ की आदत सनक में ही बदल गई दिखती है. बताया जा रहा है कि इस साल दुनिया में लाखों लोगों ने करोड़ों सेल्फी खींची हैं और दूसरों से तारीफ पाने के लिए उन्हें फेसबुक, ट्विटर या इंस्टाग्राम पर साझा किया गया है.

यह सच्चाई है कि दिखावे की प्रवृत्ति हमारे समय की सबसे खराब आदत बनती जा रही है. मोबाइल कैमरों ने तो इस प्रवृत्ति को बाकायदा सनक में बदल डाला है. यदि सेल्फी की ही बात की जाए, तो इसका एक आंकड़ा प्रकाश में आया है कि 2013 में दुनिया में 23.80 करोड़ सेल्फी फेसबुक पर अपलोड की गई थीं. यह आंकड़ा ऐसे मामलों पर नजर रखने वाली एक संस्था- सिम्प्लीफाई360 ने जारी किया था. इसके अनुसार वर्ष 2014 की छमाही तक सिर्फ इंस्टाग्राम (सोशल मीडिया का एक जरिया) पर ही 8.8 करोड़ सेल्फी डाली जा चुकी थीं. सोशल मीडिया के दूसरे मंचों को इसमें जोड़ा जाए तो आंकड़ा कई गुना ज्यादा बड़ा हो सकता है.

यह विडंबना ही है कि आज जिस समाज में कोई व्यक्ति अपने पड़ोसी को ही नहीं जानता-पहचानता है, वह सेल्फी के जरिये पूरी दुनिया के लाइक्स (तारीफ) पा लेना चाहता है. लेकिन यह मामला सिर्फ  झूठी तारीफ पाने या दिखावे का डिजिटल प्रबंध करने मात्र का नहीं है बल्कि इसके कई सामाजिक और कानूनी पहलू भी हैं जिन पर गौर किया जाना चाहिए. इसमें लोग चाहते हैं कि सोशल मीडिया पर डाली गई खुद की तस्वीर (सेल्फी) आगे बढ़ाई यानी फार्वड की जाए, दूसरे लोग उसे साझा करें और झूठ ही सही, लेकिन तारीफ करें. उन्हें फेसबुक, ट्विटर पर यह देखकर अच्छा लगता है कि सैकड़ों-हजारों लोगो ने उन्हें लाइक किया है.

लेकिन बात सिर्फ  चेहरे और देहयष्टि की सुंदरता की नहीं है. प्रशंसा सुनने के लिए सेल्फी के कई प्रयोग भी किए जा रहे हैं. जैसे बेल्फी यानी पीछे के हिस्से की सेल्फी, डेल्फी यानी कुत्ते के साथ ली गई सेल्फी और बाथरूम में ली गई सेल्फी. कई बार तो मामला हिंसा और अश्लीलता तक भी पहुंच जाता है. पिछले साल हॉलीवुड की अभिनेत्री किम कर्दाशियां ने चेहरे को खून जैसे रंग में रंगकर अपनी सेल्फी खींची थी और उसे वैंपायर फेसियल शीषर्क के साथ सोशल मीडिया में प्रसारित किया था.

एक अमेरिकी मॉडल कारा डेलेवाइंग्ले ने खुले वक्षस्थल के साथ अपनी सेल्फी इंस्टाग्राम नामक सोशल मीडिया वेबसाइट पर प्रसारित की थी, जिसे चंद मिनटों में 60 हजार लोगों के लाइक्स मिल गए थे. पिछले साल दिखावे की सनक की पराकाष्ठा का एक अन्य उदाहरण सामने आया था जब एक मां अपने बच्चे के जन्म (प्रसव) को ही लाइव दिखाने के लिए तैयार हो गई थी. हालांकि बताया जाता है कि उसने यह काम पैसे के लिए किया था, लेकिन वह शायद यह नहीं सोच पाई कि इससे उसके बच्चे की जान को कितना बड़ा खतरा हो सकता था.

अमेरिका में दिखावे की ऐसी ही एक कोशिश का तो इस साल और भी बुरा अंजाम हुआ. मैक्सिको में अपने दोस्तों पर रौब गांठने के उद्देश्य से 21 वर्षीय पशु चिकित्सक ऑस्कर ओटेरो ने भरी बंदूक को सिर के पास रखकर सेल्फी खींचने की कोशिश की तो बंदूक अचानक चल गई. गोली लगने से घायल ओटेरो ने अस्पताल ले जाते वक्त दम तोड़ दिया. लोगों ने बाद में बताया कि ओटेरो को नए ढंग से सेल्फी खींचकर फेसबुक प्रोफाइल पर लगाने की सनक थी. इससे पहले वह तेज कार चलाने, महंगी मोटर साइकिलों पर बैठने जैसे कई कारनामे सिर्फ सेल्फी खींचने के उद्देश्य से कर चुका था. यह तो दिखावे के लिए खुद की जान लेने वाली घटना थी, लेकिन कई बार ऐसा भी हुआ है जब शान बघारने का यह अंदाज दर्जनों-सैंकड़ों अन्य दूसरे लोगों की जान का दुश्मन बना है.

पिछले साल स्पेन में राजधानी मैड्रिड और फेरो के बीच एक हाईस्पीड ट्रेन की दुर्घटना असल में दिखावे की ऐसी ही सनक का नतीजा थी. उस ट्रेन के ड्राइवर फ्रांसिस्को गैरजॉन को ट्रेन को तेज रफ्तार से दौड़ाने और फिर अपनी यह बहादुरी फेसबुक प्रोफाइल के जरिये दूसरों को दिखाने का शौक था. दिखावे की सनक के चलते ही उसने ट्रेन की रफ्तार 200 किलोमीटर प्रति घंटे तक बढ़ा दी. उसने इसकी परवाह नहीं की कि उसकी ट्रेन और ट्रैक अधिकतम कितनी गति सहन कर सकते हैं. वह तो ट्रेन के स्पीडोमीटर की सुई को 200 के अंक तक पहुंचाकर उसकी फोटो फेसबुक पर लगाना चाहता था. लेकिन इतनी अधिक गति पाकर एक मोड़ पर  ट्रेन ट्रैक से फिसल गई और उस भीषण दुर्घटना में 80 से ज्यादा लोग मारे गए, जबकि डेढ़ सौ के करीब घायल हुए.

सेल्फी जैसे तरीकों से दिखावा करना निश्चित तौर पर मनोवैज्ञानिक समस्या है. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कई लोगों को अपनी अमीरी और उपलब्धियों का बखान करने में ही संतोष मिलता है. इसके लिए वे तरह-तरह से दिखावा करते हैं. सड़कों पर खतरनाक ढंग से मोटर साइकिल या अन्य वाहन चलाना और उस पर स्टंट दिखाना ऐसी ही घातक प्रवृत्ति है जिससे हमारा युवा समाज बुरी तरह ग्रसित है. देखा गया है कि आम तौर पर 20 से 40 साल की उम्र के लोगों में इस तरह की सनक होती है. इसके लिए कभी वे आस-पड़ोस में अपना स्टेटस दिखाने के लिए महंगी गाड़ियां और महंगे मोबाइल फोन खरीदते हैं तो कभी बच्चों की शादी में लाखों रुपये फूंक डालते हैं.

ऐसे शो-ऑफ से अमीरों की सेहत पर तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन यह सनक कर्ज लेकर दिखावा करने वालों पर भारी पड़ती है. कई बार ऐसे ही लोग कर्ज के जाल में फंसकर या तो अपराध की राह पर चल पड़ते हैं या फिर आत्महत्या जैसे कायराना रास्ते अपना लेते हैं. दिखावे की यह सनक कुछ लोगों को दूसरों के मुकाबले श्रेष्ठ होने का क्षणिक अहसास भले ही करा दे, लेकिन बाद में इसके बहुत कुप्रभाव दिखाई पड़ते हैं और अंतत: यह सनक बीमारी और सामाजिक समस्या के रूप में ही प्रकट होती है. अच्छा होगा यदि हमारे युवा अपने अच्छे व सर्जनात्मक कार्यों से समाज, देश और दुनिया में प्रतिष्ठा हासिल करने का प्रयास करें, न कि सेल्फी जैसे अनवरत दिखावे की होड़ में फंसें.

मनीषा सिंह
लेखिका


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