कड़ा कानून लगाएगा हादसों पर लगाम

Last Updated 19 Sep 2014 01:14:10 AM IST

नए सड़क सुरक्षा और परिवहन बिल 2014 का मसौदा जारी कर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अपनी उस प्रतिबद्धता को साबित किया जो उन्होंने सरकार गठन के कुछ समय बाद ही जाहिर की थी.




कड़ा कानून लगाएगा हादसों पर लगाम

इससे कम से कम यह तो पता चलता है कि नई सरकार सड़कों को ज्यादा सुरक्षित बनाने के काम को गंभीरता से ले रही है. यह उम्मीद भी की जा सकती है कि अगर यह बिल संसद में आया और आशा के अनुरूप पारित हो गया तो निकट भविष्य में सड़कों पर होने वाले हादसों और उनसे होने वाली मौतों में कमी लाई जा सकती है. लेकिन यह सब तभी संभव हो सकेगा जब इसे लेकर अब तक दिखाई गई संजीदगी आगे भी जारी रहेगी. यह सवाल इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि पिछली सरकार में भी सड़क सुरक्षा को लेकर संसद में बिल आया था लेकिन उसका हुआ कुछ नहीं. परिणाम यह हुआ कि सब कुछ पहले जैसा चलता रहा, हादसे होते रहे और मौत के आंकड़े बढ़ते रहे.

सरकार की ओर से जारी किए गए मसौदे में सड़क हादसों में कमी लाने के लिए कड़े उपाय किए जाने की वकालत की गई है. शराब पीकर गाड़ी चलाने पर 25 हजार रु पए का जुर्माना, तीन महीने की सजा और छह महीने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस निलंबित किए जाने का प्रावधान किया गया है. दुर्घटना में बच्चे की मृत्यु होने पर दोषी पर तीन लाख रु पए के जुर्माने के साथ ही कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान किया गया है. अनफिट वाहन चलाते हुए पकड़े जाने पर एक लाख रुपए का जुर्माना और छह माह की सजा हो सकती है.

रेड लाइट तीन बार जंप करने पर एक महीने के लिए लाइसेंस निलंबित किया जाएगा और 15 हजार रु पए का जुर्माना लगाया जाएगा. अब व्यवसायिक वाहनों के अलावा व्यक्तिगत वाहनों (कार व स्कूटर आदि) का भी हर पांच साल में फिटनेस टेस्ट कराना होगा ताकि पता चल सके कि वे सड़क पर चलने योग्य हैं या नहीं. इसके अलावा यूनिफाइड ड्राइविंग लाइसेंस सिस्टम को पूरी तरह कंप्यूटराइज्ड किया जाएगा जिससे एक राज्य में लाइसेंस निलंबित होने पर दूसरे राज्य में उसे न बनवाया जा सके. नेशनल हाईवेज के लिए ट्रैफिक रेगुलेशन एंड प्रोटेक्शन फोर्स बनाने की भी व्यवस्था किए जाने की बात कही गई है. सबसे अच्छी बात यह है कि इस मसौदे के अनुसार हादसे के तुरंत बाद पीड़ित के कैशलेस उपचार की व्यवस्था होगी.

इस तरह के किसी बिल अथवा कानून की जरूरत काफी पहले से महसूस की जा रही थी क्योंकि सड़क हादसों और उनमें मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही थी. काफी लंबे समय से पुराने कानून से ही काम चलाया जा रहा था जबकि इसके कई प्रावधान बेअसर साबित होते जा रहे थे. इसीलिए जरूरत महसूस की जा रही थी कि मोटर वाहन कानून को ज्यादा तर्कसंगत बनाया जाए. वैसे तो नई सरकार के एजेंडे में यह पहले से ही था लेकिन इसे ज्यादा गंभीरता से तब लिया गया जब केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई. तभी केंद्रीय परिवहन मंत्री ने कहा था कि सरकार जल्द ही कानून में आवश्यक संशोधन कर ट्रैफिक नियमों को और ज्यादा कड़ा बनाएगी. इसके अलावा सड़कों पर यातायात का बोझ कम से कम 15 प्रतिशत घटाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा दिए जाने और राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद के गठन की भी बात कही थी. यह मसौदा उसी का परिणाम है. इस बिल के उद्देश्यों में जानलेवा दुर्घटनाओं को करीब 20 प्रतिशत कम करने की कोशिश करना भी शामिल है.

इस मसौदे के परिप्रेक्ष्य में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आखिर अभी सड़क हादसों की क्या स्थिति है. एक अध्ययन के मुताबिक भारत की सड़कें और चौराहे हादसों से होने वाली मौतों के लिहाज से काफी खतरनाक माने गए हैं. तिराहों और चौराहों पर वर्ष 2013 में हुए वाहन हादसों की वजह से देश में करीब 75,200 लोगों को जान गंवानी पड़ी है. यह सड़क हादसों में मरने वालों की कुल संख्या का करीब 50 प्रतिशत है. ऐसे चौराहों पर, जहां न ट्रैफिक लाइट होती है और न यातायात पुलिस, वाहन हादसों में मरने वालों की तादाद करीब 56,868 बताई गई है. इस रिपोर्ट में पहली बार यह भी बताया गया है कि खराब सड़कों की वजह से होने वाले करीब 9700 हादसों में 2600 लोगों की मौत हुई. इनमें सर्वाधिक 700 मौतें उत्तर प्रदेश में हुई.

सड़क हादसों और उनमें मरने वालों की संख्या लगातार चिंताजनक रूप से बढ़ रही है. इसे केवल इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि 2004 में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या जहां करीब 92,618 थी, वर्ष 2013 में यह संख्या बढ़कर 1.39 लाख हो गई. आंकड़े बताते हैं कि भारत पूरी दुनिया में सड़कों पर होने वाले हादसों के लिहाज से पहले नंबर पर है. एक अनुमान के मुताबिक देश में रोजाना करीब चार से लेकर पांच सौ तक लोग सड़क हादसों के शिकार होते हैं. यहां करीब हर मिनट एक सड़क हादसा और हर तीन मिनट में एक मौत हो जाती है. ट्रांसपोर्ट रिसर्च विंग (टीआरडब्ल्यू) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2005 में हुए 439255 सड़क हादसों में 94968 लोगों को जान गंवानी पड़ी. 2006 में 460920 दुर्घटनाओं में 105749 लोगों की मृत्यु हुई. 2007 में 479216 सड़क हादसों में 114444, 2008 में 484704 हादसों में 119860 और 2009 में 486384 हादसों में 125660 लोगों की मृत्यु हुई.

यह ध्यान देने की बात है कि अभी देश में 1988 में बनाए गए मोटर वाहन कानून से ही काम चलाया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि इसे समय की जरूरतों के मुताबिक संशोधित करने के प्रयास नहीं किए गए. वर्ष 2007 में पहली बार तत्कालीन सरकार ने नया बिल संसद में प्रस्तुत किया था. लेकिन बाद में विभागीय मंत्री ने इसमें कुछ बदलावों के चलते इसे वापस ले लिया था. इससे संबंधित बिल एक बार फिर मई 2012 में तत्कालीन सड़क परिवहन मंत्री सीपी जोशी ने राज्यसभा में पेश किया था. राज्यसभा ने इसे पारित भी कर दिया था लेकिन लोकसभा में पारित न होने की वजह से यह निष्प्रभावी हो गया था. इसके पहले इस कानून में अंतिम कुछ संशोधन 2001 में किए गए थे. उसके बाद करीब दस वर्षो तक इसमें कोई संशोधन नहीं किया गया जबकि इस दौरान सड़कों पर बोझ और वाहन दुर्घटनाएं बढ़ती गई हैं.

अब जबकि इस कानून को बदलने के लिए बिल का मसौदा सामने आया है तो उम्मीद की जा सकती है कि संसद के अगले सत्र में इसे पेश और पारित किया जा सकता है. फिलहाल संबंधित मंत्रालय इस मसौदे पर सभी राज्यों और अन्य पक्षों की राय लेगा. इसके बाद ही इसे संसद में पेश किया जाएगा. यह जरूरी भी है क्योंकि  कोई भी प्रावधान लागू करने के लिए राज्यों की सहमति जरूरी होगी. ऐसा इसलिए भी क्योंकि उन्हें ही इसे लागू करना होगा. मसौदे के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इसमें वाहन दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए कड़े दंड के प्रावधान प्रस्तावित हैं. यह उचित भी है. लेकिन यह सवाल बाकी रह जाता है कि क्या सिर्फ कड़े दंड की व्यवस्था करने भर से हादसों में कमी लाई जा सकेगी? जाहिर है इसके अलावा अन्य पहलुओं पर भी विचार करना होगा ताकि लोगों की जुर्माना भर देने अथवा सजा काट लेने की मनोवृत्ति से भी कुछ छुटकारा पाया जा सके. तभी नए बिल अथवा कानून की सार्थकता होगी.

राम शिरोमणि शुक्त
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment