पंडितजी पर था बांसुरी का जुनून

Last Updated 01 Jul 2010 04:03:00 AM IST

जन्म दिवस 01 जुलाई पर विशेष। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया पर संगीत सीखने का जुनून सवार था।


बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि परम्परागत वाद्य बांसुरी को विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित करने वाले सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए न चाहते हुए भी पहलवानी सीखने के लिए अखाड़े में जाना पड़ता था।

हालांकि पंडित हरिप्रसाद चौरसिया पर संगीत सीखने का जुनून सवार था और वह अपने मित्र के घर में चोरी-छिपे संगीत सीखा करते थे। उन्हें कुश्ती सीखना बिलकुल भी पसंद नहीं था लेकिन वह मानते हैं कि कुश्ती सीखना उनके बांसुरी बजाने में सहायक सिद्ध हुआ। इससे उनके फेफडे़ मजबूत बने और उन्हें घंटों रियाज करने के लिए बैठने की ताकत मिली। वह बताते हैं मैं कुश्ती में बिलकुल भी अच्छा नहीं था।

मैं अखाड़े में सिर्फ अपने पिता को खुश करने के लिए जाता था। लेकिन यह शायद पहलवानी से हासिल ताकत का ही कमाल था कि मैं आज तक बांसुरी बजा रहा हूं। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म 01 जुलाई 1938 को इलाहाबाद में एक ऐसे परिवार में हुआ। जिसका संगीत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। उनके पिता पहलवान थे। उनकी माता का निधन उस समय हो गया। जब वह पांच साल के ही थे।

पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने पंद्रह वर्ष की उम्र में अपने पड़ोसी पंडित राजाराम से शास्त्रीय गायन की तालीम लेनी शुरू की। इसके एक साल बाद उन्हें वाराणसी के पंडित भोला नाथ प्रसन्ना का बांसुरी वादन सुनने का मौका मिला और उनके जीवन की धारा ही बदल गयी। वह पंडित भोलानाथ से बांसुरी वादन सीखने लगे।

पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने आकाशवाणी, इलाहाबाद में भी कुछ समय तक काम किया लेकिन संगीत को पेशे के रूप में आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने पांच साल बाद काम छोड़ दिया। संगीत में उत्कृष्टता हासिल करने की खोज उन्हें बाबा अलाउद्दीन खां की सुयोग्य पुत्री और शिष्या अन्नापूर्णा देवी की शरण में ले गयी, जो उस समय एकान्तवास कर रही थीं और सार्वजनिक रूप से वादन और गायन नहीं करती थीं। अन्नपूर्णा देवी की शार्गिदी में उनकी प्रतिभा में और निखार आया और उनके संगीत को जादुई स्पर्श मिला।

पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने बांसुरी के जरिए शास्त्रीय संगीत को तो लोकप्रिय बनाने का काम किया ही, संतूर वादक पंडित शिवशंकर शर्मा के साथ मिलकर ‘शिव-हरि’ नाम से कुछ हिन्दी फिल्मों में सुमधुर संगीत भी दिया। इस जोड़ी की फिल्में हैं चांदनी, डर, लम्हे, सिलसिला, फासले, विजय और साहिबान।

पंडित चौरसिया ने एक तेलुगु फिल्म ‘सिरीवेनेला’ में भी संगीत दिया। जिसमें नायक की भूमिका उनके जीवन से प्रेरित थी। इस फिल्म में नायक की भूमिका सर्वदमन बनर्जी ने निभायी थी और बांसुरी वादन उन्होंने ही किया था। इसके अलावा पंडित जी ने बालीवुड के प्रसिद्ध संगीतकारों सचिन देव बर्मन और राहुल देव बर्मन की भी कुछ फिल्मों में बांसुरी वादन किया है।
 



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