बाधाएं लांघ बुलंदियों पर पहुंचे जगजीवन राम

Last Updated 04 Apr 2011 10:37:21 PM IST

बाबू जगजीवन राम स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थे और तमाम बाधाओं को पार कर बुलंदियों को छुआ.


पांच अप्रैल जन्मदिन पर विशेष

पांच अप्रैल 1908 को बिहार में आरा के नजदीक चंदवा में जन्मे जगजीवन राम ने अपने नाम के अनुरूप जीवन में कभी हार नहीं मानी और भारतीय राजनीति में एक अमिट हस्ती बन गए.

महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के पूर्व प्रोफेसर नरेंद्र कुमार के अनुसार बाबू जगजीवन राम भारतीय राजनीति की एक बड़ी हस्ती हैं जिन्होंने कभी हारना नहीं सीखा.

उन्होंने कहा कि जगजीवन राम ने जहां स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वहीं उन्होंने समाज सुधार के भी बहुत कार्य किए और अपने कौशल एवं मेधा के चलते भारतीय राजनीति में महती भूमिका अदा की और कई मंत्री पदों को सुशोभित किया.

कुमार के अनुसार 1971 में जब भारत ने पाकिस्तान को भारी शिकस्त देकर बांग्लादेश का निर्माण किया, उस समय रक्षामंत्री के रूप में बाबू जगजीवन ने सेना का कुशल नेतृत्व किया.
   
जगजीवन राम को अपने स्कूली दिनों में भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ा था. उस समय हालात यह थे कि स्कूलों में हिन्दू  मुसलमानों और दलितों के लिए पीने के पानी के अलग-अलग घड़े रखे जाते थे लेकिन जगजीवन राम ने इस कुरीति का जमकर विरोध किया.

राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ जगजीवन राम के जीवन को पिछड़ों और दलितों के लिए एक प्रेरणा मानते हैं जिन्होंने छुआछूत के खिलाफ सफल लड़ाई लड़ी. प्रोफेसर केएस पाराशर के अनुसार जगजीवन राम की राजनीतिक क्षमताओं को सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पहचाना था.

जगजीवन राम ने 1928 में कोलकाता के वेलिंगटन स्क्वेयर में एक विशाल मजदूर रैली का आयोजन किया था जिसमें लगभग 50 हजार लोग शामिल हुए. नेताजी सुभाष चंद्र बोस तभी भांप गए थे कि जगजीवन राम में एक बड़ा नेता बनने के तमाम गुण मौजूद हैं.

महात्मा गांधी के आह्वान पर भारत छोड़ो आंदोलन में भी जगजीवन राम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह उन बड़े नेताओं में शामिल थे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत को झोंकने के अंग्रेजों के फैसले की निन्दा की थी. इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

वर्ष 1946 में वह जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार में सबसे कम उम्र के मंत्री बने. भारत के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें श्रम मंत्री का दर्जा मिला और 1946 से 1952 तक इस पद पर रहे.

जगजीवन राम 1952 से 1986 तक संसद सदस्य रहे. 1956 से 1962 तक उन्होंने रेल मंत्री का पद संभाला. 1967 से 1970 और फिर 1974 से 1977 तक वह कृषि मंत्री रहे.

इतना ही नहीं 1970 से 1971 तक जगजीवन राम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. 1970 से 1974 तक उन्होंने देश के रक्षामंत्री के रूप में काम किया. 23 मार्च 1977 से 22 अगस्त 1979 तक वह भारत के उप प्रधानमंत्री भी रहे.

आपातकाल के दौरान वर्ष 1977 में वह कांग्रेस से अलग हो गए और 'कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी' नाम की पार्टी का गठन किया और जनता गठबंधन में शामिल हो गए. इसके बाद 1980 में उन्होंने कांग्रेस (जे) का गठन किया. छह जुलाई 1986 को 78 साल की उम्र में इस महान राजनीतिज्ञ का निधन हो गया.
 



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment