भारत के मंगल मिशन पर नजरें

Last Updated 22 Apr 2013 02:32:10 AM IST

नासा के मिशन मंगल के बाद अब भारत ने भी मंगल पर पहुंचने की कवायद शुरू कर दी है.


पीएसएलवी-एक्स एल (फाइल फोटो)

पिछले दिनों केंद्रीय कैबिनेट ने भारत के मिशन मार्स के तहत नवम्बर, 2013 में मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने को मंजूरी दे दी है. अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपण का सौवां मिशन पूरा करने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मंगल मिशन की तैयारी शुरू कर दी है. यह मिशन पूरी तरह से स्वदेशी होगा. इस परियोजना पर करीब 450 करोड़ रुपए खर्च होंगे. कई शोधों से यह साबित हो चुका है कि मंगल ग्रह ने धरती पर जीवन के क्रमिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, इसलिए यह अभियान देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण है.

मंगलयान के साथ 15 किलो का पेलोड भेजा जाएगा. इनमें कैमरे और सेंसर जैसे उपकरण शामिल हैं, जो मंगल के वायुमंडल और उसकी दूसरी विशिष्टताओं का अध्ययन करेंगे. मंगलयान को लाल ग्रह के निकट पहुंचने में आठ महीने लगेंगे. मंगल की कक्षा में स्थापित होने के बाद यान मंगल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां भेजेगा. मंगलयान का मुख्य फोकस संभावित जीवन, ग्रह की उत्पत्ति, भौगोलिक संरचनाओं और जलवायु आदि पर रहेगा. यान यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या लाल ग्रह के मौजूदा वातावरण में जीवन पनप सकता है. मंगल की परिक्रमा करते हुए ग्रह से उसकी न्यूनतम दूरी 500 किमी और अधिकतम दूरी आठ हजार किमी रहेगी. इसरो के पूर्व अध्यक्ष प्रो. यूआर राव के नेतृत्व में गठित समिति ने मंगलयान द्वारा किए जाने वाले प्रयोगों का चयन किया है. प्रो. राव के अनुसार उनकी टीम ने मंगल के लिए कुछ नायाब किस्म के प्रयोग चुने हैं. एक प्रयोग के जरिए मंगलयान लाल ग्रह के मीथेन रहस्य को सुलझाने की कोशिश करेगा. क्योंकि मंगल के वायुमंडल में मीथेन गैस की मौजूदगी के संकेत मिले हैं.

मंगलयान पता लगाने की कोशिश करेगा कि मंगल पर मीथेन उत्सर्जन का स्रोत क्या है. मंगल आज भले ही एक निष्प्राण लाल रेगिस्तान जैसा नजर आता हो, लेकिन उसके बारे में कई सवाल आज भी अनुत्तरित हैं. हमारे सौरमंडल में अभी सिर्फ पृथ्वी पर जीवन है. शुक्र ग्रह पृथ्वी के बहुत नजदीक हैं, लेकिन वहां की परिस्थितियां जीवन के लिए एकदम प्रतिकूल हैं. मंगल भी पृथ्वी के बेहद करीब है, लेकिन उसके वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम है. वहां कुछ चुंबकीय पदार्थ भी मौजूद हैं, लेकिन ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र नहीं है. केवल एक अंतरिक्ष यान भेज कर चंद्रमा पर जल खोजकर भारत ने जो करिश्मा किया उसे देखते हुए भारत के मंगल अभियान को लेकर देश के भीतर व बाहर दोनों जगह उत्साह का माहौल है. मंगलयान भारत की पूर्ण स्वदेशी योजना है. मंगलयान की उड़ान यह सिद्ध करेगी कि भारत 5 करोड़ से 40 करोड़ किमी लंबी तथा 300 दिन तक चलने वाली अंतरिक्ष यात्राओं को कुशलता से नियंत्रित कर सकता है.                               
    
भारत का मंगलयान मंगल पर उतरेगा नहीं, अपितु उसकी सतह से 500 से 8 हजार किमी दूर रहते हुए परिक्रमा करेगा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान का विश्वस्त राकेट ‘पीएसएलवी-एक्स एल’ मंगलयान को लेकर श्री हरिकोटा से उड़ान भरेगा. पीएसएलवी मंगलयान को अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर देगा. इसके बाद मंगलयान के छह इंजन चालू होकर इसे पृथ्वी की उत्केंद्री कक्षा में ऊपर उठा देंगे. तब मंगलयान 600 से 2.15 लाख किमी दूर रहते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करने लगेगा. इसके बाद एक बार यान के इंजन फिर चालू किए जाएंगे जो मंगलयान को पृथ्वी की कक्षा से निकाल कर उसे सूर्य लक्ष्यी पथ पर मंगल की ओर अंतरग्रही यात्रा पर भेज देगें. यदि सब कुछ योजनानुरूप चला तो मंगलयान सितम्बर 2014 में मंगल की परिक्रमा में पहुंच जाएगा.

मंगलयान मंगलग्रह की परिक्रमा करते हुए ग्रह की जलवायु, आंतरिक बनावट, वहां जीवन की उपस्थिति, ग्रह की उत्पत्ति, विकास आदि के विषय में बहुत-सी जानकारी जुटा कर पृथ्वी पर भेजेगा. वैज्ञानिक जानकारी को जुटाने हेतु मंगलयान पर कैमरा, मिथेन संवेदक, उष्मा संवेदी अवरक्त वर्ण विश्लेषक, परमाणुविक हाइड्रोजन संवेदक, वायु विश्लेषक आदि पांच प्रकार के उपकरण लगाए जा रहे हैं. इन उपकरणों का वजन 15 किलोग्राम के करीब होगा. मेथेन की उत्पत्ति जैविक है या रासायनिक, यह सूचना मंगल पर जीवन की उपस्थिति का पता लगाने में सहायक होगी. मंगलयान में ऊर्जा की आपूर्ति हेतु 760 वाट विद्युत उत्पादन करने वाले सौर पैनल लगे होंगे.

इस अभियान में 15 किलो के पांच एक्सपेरिमेंटल पेलोड्स भेजे जाएंगे. मंगल के लिए जो मिथेन सेंसर भेजा जाएगा उसका वजन 3.59 किलो होगा. यह सेंसर मंगल के पूरे डिस्क को छह मिनट के अंदर स्कैन करने में सक्षम है. दूसरा उपकरण थर्मल इंफ्रारेड स्पेक्टोमीटर है. इसका वजन चार किलो होगा. यह मंगल की सतह को मैप करेगा. एक और उपकरण मार्स कलर कैमरा है जिसका वजन 1.4  किलो है. इसके अलावा लेमैन-अल्फा फोटोमीटर का वजन 1.5  किलो है. यह मंगल के वातावरण में एटॉमिक हाइड्रोजन का पता लगाएगा.

इससे पहले के दूसरे देशों के मंगल अभियानों में भी इस ग्रह के वायुमंडल में मिथेन का पता चला था, लेकिन इस खोज की पुष्टि की जानी अभी बाकी है. ऐसा माना जाता है कि कुछ तरह के जीवाणु अपनी पाचन प्रक्रिया के तहत मिथेन गैस मुक्त करते हैं. अगर भारत का मंगल अभियान समय पर शुरू हो जाता है तो इससे वह उन खास पांच देशों की लिस्ट- अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और जापान- में आ जाएगा, जो इस तरह के मिशन को अंजाम दे चुके हैं.
लाल ग्रह यानी मंगल पर जीवन की संभावनाओं को लेकर वैज्ञानिकों की ही नहीं, आम आदमी की भी उत्सुकता लंबे अरसे से रही है. इस जिज्ञासा के जवाब को तलाशने के लिए कई अभियान मंगल ग्रह पर भेजे भी गए. मंगलयान का मुख्य काम यह पता करना है कि क्या कभी मंगल ग्रह पर जीवन था. मंगलयान ग्रह की मिट्टी के नमूनों को इकट्ठा कर यह पता लगाएगा कि क्या कभी मंगल पर जीवन था या नहीं? इस अभियान का उद्देश्य यह पता लगाना है कि वहां सूक्ष्म जीवों के जीवन के लिए स्थितियां हैं या नहीं और अतीत में क्या कभी यहां जीवन रहा है. पृथ्वी से बाहर ग्रहों के बीच किसी यान को भेजने का भारत का यह पहला अवसर होगा. यदि भारत अपने मंगलयान को सुरक्षित मंगल की कक्षा में पहुंचा कर उसे ठीक से नियंत्रित रख लेता है तो भी यह एक बड़ी उपलब्धि होगी.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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