संचार माध्यमों से सुगम होगी राह

Last Updated 04 Jul 2012 12:53:23 AM IST

पिछले दिनों दिल्ली में वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका पर एक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ.


यह आयोजन विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत देश की चार अग्रणी संस्थाओं- सीएसआईआर-निस्केयर, विज्ञान प्रसार, राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं संचार परिषद् एवं राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद द्वारा किया गया. अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी भाषा में विज्ञान संचार का यह पहला सम्मेलन था, जिसमे देश-विदेश के प्रमुख विज्ञान संचारकों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया.

वैज्ञानिक जागरूकता और जन सशक्तिकरण के परिप्रेक्ष्य में मीडिया और डिजिटल माध्यम द्वारा हिंदी में विज्ञान संचार की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है. लेकिन हम विज्ञान से जुड़े व्यक्ति और वैज्ञानिकों को ही विज्ञान के क्षेत्र में कुशल मानते हैं इसलिए आम आदमी द्वारा डिजिटल माध्यम में हिंदी संचार को कमोबेश कम विसनीय माना जाता है.

जबकि हिंदी में विज्ञान संचार और स्थानीय स्तर पर देशी वैज्ञानिकों की जानकारी देने वाले लेखन का सामने आना जरूरी है. अमेरिका में दस परिवारों में से एक परिवार जरूर अपनी भाषा में वैज्ञानिक पत्रिका पढ़ता है. वहां वैज्ञानिक नहीं बल्कि विज्ञान पत्रकार ही ज्यादातर लेख लिखते हैं जबकि हमारे यहां वैज्ञानिक पत्रकारिकता अभी शैशव अवस्था में है.

इसे जरूरी प्रोत्साहन देने की जरूरत है तभी स्वस्थ व जनहितकारी विज्ञान पत्रकारिता हर माध्यम से आम लोगों के सामने आएगी. विज्ञान और शोध संबंधी रिपोर्ट प्रिंट मीडिया में तो जगह बना रही हैं लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इससे कोसों दूर है. खबरिया चैनलों में विज्ञान व तकनीक से जुड़ी सनसनीखेज खबरें ही जगह बना पाती हैं. देश की प्रगति और आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा यह क्षेत्र देश में उपेक्षित सा है.

इंटरनेट की पहुंच आज जन सामान्य तक हो चुकी है और दुनिया में इसके उपयोगकर्ता तेजी से बढ़ रहे हैं. संदर्भ और जानकारी के मामले में पुस्तकालय के साथ-साथ इंटरनेट को भी प्राथमिकता मिलने लगी है. ऐसे में विज्ञान शिक्षा क्यों पीछे है जबकि  आज हर घर, हर विद्यालय में शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों इंटरनेट के माध्यम से विज्ञान शिक्षण की बुलंदियां छू सकते हैं.

डिजिटल माध्यम या मीडिया द्वारा हिंदी में विज्ञान संचार का उद्देश्य लोगों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों और खोजों की समग्र जानकारी प्रदान करना है. अनेक वैज्ञानिक और वैज्ञानिक खोजें, पद्धतियां, पारंपरिक ज्ञान और नवाचार के प्रयोग तब अज्ञात रह जाते हैं, जब उन्हें और अखबारों में जगह अथवा कोई मंच नहीं मिलता.

ऐसे लोगों में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय संसाधनों से आविष्कारों में लगे लोगों को लिया जा सकता है. जैसा हाल में अमेरिकी फोर्ब्स पत्रिका ने सात ग्रामीण भारतीय वैज्ञानिकों की जानकारी दी है. इन अविष्कारकों ने ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के बावजूद ऐसी तकनीकें ईजाद की हैं जिससे देश भर में लोगों को जीवन में बदलाव के अवसर मिले हैं.

जबकि इनमें से ज्यादातर प्राथमिक शिक्षा प्राप्त भी नहीं हैं. इनके नामों का चयन आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर और भारत में हनीबी नेटवर्क के संचालक अनिल गुप्ता ने फोर्ब्स पत्रिका के लिए किया था.  रोजमर्रा की जिंदगी में विज्ञान और तकनीकी विषयों से संबंधित जानकारी निर्णय लेने की क्षमता के विकास में भी जिज्ञासु आविष्कारकों के लिए मददगार साबित हो सकती है.

दस वर्ष बाद भारत की स्थिति आश्चर्यजनक रूप से बदल जाएगी. मोबाइल पर व्यक्ति के आई कार्ड के साथ-साथ एक पुस्तकालय भी होगा. लगभग दो घंटे की फिल्म, लंबे टीवी कार्यक्रम मात्र आधा मिनट में डाउनलोड किए जा सकेंगे. वि के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों के मल्टी मीडिया व्याख्यान भी मोबाइल पर जब चाहे देख-सुन सकेंगे. मोबाइल जीपीएस तकनीकयुक्त होंगे. 2020 तक इन्टरनेट किसी न किसी रूप में हर व्यक्ति से जुडा़ होगा.

विगत वर्षों में भारत ने सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जबरदस्त कामयाबी हासिल की है और इसने जीवन के तमाम क्षेत्रों को प्रभावित किया है. जनसंचार माध्यमों में इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का दायरा बहुत व्यापक है. इसमें रेडियो, टेलीविजन, फिल्म, प्रोजेक्टर तथा बाइस्कोप शामिल हैं. विगत कुछ वर्षों में तरक्की के चलते डिजिटल माध्यम एक सशक्त तथा प्रभावी विधा के रूप में उभरा है जिसमें दृश्य, श्रव्य, वीडियो, एनिमेशन और अनुरूपण द्वारा सूचना को प्रभावी तरीके से लक्ष्य वर्ग तक पहुंचाया जा सकता है. शिक्षा में बेहतर जानकारी के लिए ई-सामग्री बहुत उपयोगी पायी गयी है.

इन दिनों ई-सामग्री के विकास पर काफी बल दिया जा रहा है. हिन्दी में विज्ञान संचार तथा उसकी आवश्यकताएं बहुत व्यापक हैं. डिजिटल माध्यम द्वारा हिंदी में विज्ञान संचार के लिए ब्लॉग लेखन तेजी से उभरता क्षेत्र है. ब्लॉग लेखन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह पूरे वि में पढ़ा जा सकता है और अनन्त समय तक इंटरनेट पर सुरक्षित रहता है.

वैज्ञानिक प्रगति के परिप्रेक्ष्य में अभी हिन्दी में अनेक कमियां दिखायी देती हैं. सरकार के हिन्दी को बढ़ावा देने के उपक्रम अक्सर प्रतीकात्मक रह जाते हैं. यही कारण है इंटरनेट पर अधिकांश सामग्री अंग्रेजी में है और केवल बाहरी लिंक हिन्दी में हैं. भाषा के प्रश्न को छोड़ दें तो भी यदि आम आदमी की विज्ञान में रुचि बढ़ानी होगी तो घर-परिवार में बच्चों को हिंदी में डिजिटल माध्यम द्वारा विज्ञान संचार तकनीक की जानकारी देते हुए बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित करना होगा. हिंदी में विज्ञान संचार के लिए डिजिटल माध्यम के क्षेत्र में असीम संभावनाएं है लेकिन चुनौतियां भी हैं, जिनसे मुकाबला करते हुए इस क्षेत्र को आम आदमी से जोड़ना होगा.

वास्तव में संचार माध्यम समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण जगाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. अखबारों में नियमित  विज्ञान कॉलम और टीवी में विज्ञान स्लाट होगा तो लोंगो का इस ओर रुझान बढ़ेगा. आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अंधविास से जुड़े कार्यक्रम तो बराबर दिखाये जा रहे हैं लेकिन विज्ञान से जुड़े कार्यक्रमों का सर्वथा अभाव है. यह स्थिति बदलनी चाहिए. प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों को विज्ञान संबंधी खबरों-लेखों के प्रति ज्यादा जागरूक होना होगा ताकि आम आदमी विज्ञान से जुड़ सके.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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