आत्मनिर्भरता की ओर भारत का निर्णायक कदम

Last Updated 25 Oct 2025 01:05:31 PM IST

भारत सरकार की नई रक्षा खरीद नियमावली देश की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक निर्णय के रूप में देखी जा रही है।


आत्मनिर्भरता की ओर भारत का निर्णायक कदम

रक्षा मंत्री के जरिये यह घोषणा की गई है कि इसके तहत लगभग 79,000 करोड़ रुपये के रक्षा उपकरण खरीदे जाएंगे। यह न केवल तीनों सेनाओं थलसेना, वायुसेना और नौसेना को और अधिक सशक्त बनाएगा, बल्कि भारत के रक्षा उद्योग को नई गति और दिशा देगा। अब तक भारत में रक्षा खरीद की प्रक्रिया जटिल और समय-साध्य रही है। विदेशी निर्भरता, तकनीकी पिछड़ापन और घरेलू रक्षा उत्पादन में पारदर्शिता की कमी जैसे मुद्दे लंबे समय से चिंता का विषय रहे हैं। नई नीति का उद्देश्य इन बाधाओं को दूर करते हुए रक्षा उत्पादन को मेक इन इंडिया के तहत घरेलू उद्योगों से जोड़ना है। इससे न केवल आधुनिक तकनीक भारत में विकसित होगी बल्कि विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उत्पादन के माध्यम से देश में रोजगार और कौशल विकास के नए अवसर भी खुलेंगे।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति भारत को रक्षा आयातक से रक्षा निर्यातक देश बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। पूर्व थलसेना उपप्रमुख ले. जनरल (सेवानिवृत्त) पी.के. सिंह का कहना है कि नई नियमावली से रक्षा सौदों में पारदर्शिता बढ़ेगी, और देश की सेनाओं को समय पर आवश्यक उपकरण मिल सकेंगे। रक्षा विश्लेषक डॉ. अजय कुमार के अनुसार, भारत लंबे समय से विदेशी आपूर्ति पर निर्भर रहा है, जिससे रणनीतिक जोखिम बढ़ जाते हैं। अब स्वदेशी उत्पादन पर जोर देकर यह जोखिम काफी हद तक कम किया जा सकेगा। वहीं, आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इससे रक्षा उद्योग में 5 लाख से अधिक अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और देश की जीडीपी में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

नई रक्षा खरीद नीति में इंडियन आइडेंटिटी को प्राथमिकता दी गई है। इसका अर्थ यह है कि प्राथमिकता घरेलू कंपनियों को दी जाएगी। साथ ही, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और निजी कंपनियों के बीच सहयोग बढ़ाया जाएगा। इसके तहत रक्षा उपकरणों की खरीद में 50 फीसद से अधिक घरेलू मूल्यवर्धन की अनिवार्यता रखी गई है। इसका सीधा अर्थ यह है कि भविष्य में भारत अपने टैंक, हेलीकॉप्टर, मिसाइल और राडार सिस्टम खुद डिजाइन और निर्मित कर सकेगा। हालांकि नीति महत्वाकांक्षी है, पर चुनौतियां भी कम नहीं हैं। स्वदेशी उत्पादन के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता और अनुसंधान अभी सीमित है। निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार को दीर्घकालिक अनुबंध और नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही, गुणवत्ता मानकों से समझौता किए बिना उत्पादन को तेज करना भी आवश्यक होगा। इस नीति का सबसे बड़ा परिणाम यह होगा कि आने वाले वषोर्ं में भारत रक्षा क्षेत्र में नेट एक्सपोर्टर बन सकता है। जैसे-जैसे स्वदेशी हथियार और तकनीक विकसित होगी, भारत न केवल अपनी सेनाओं की जरूरतें पूरी करेगा बल्कि मित्र देशों को भी रक्षा सामग्री उपलब्ध करा सकेगा। इससे भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और वैिक प्रतिष्ठा दोनों में वृद्धि होगी। 

रक्षा खरीद नियमावली की विशेषताओं का सवाल है तो यह मैनुअल उन वस्तुओं/सेवाओं की राजस्व-खरीद के लिए है जिनका उपयोग प्रत्यक्ष रूप से संचालन, रख-रखाव, आपूर्ति में प्रयोग होगा। यह लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की राजस्व-खरीद प्रक्रियाओं को सरल, त्वरित एवं लागत-प्रभावी बनाना। तीनों सेनाओं (थल, नौसेना, वायु) तथा रक्षा मंत्रालय के अन्य घटकों में समन्वय व एकरूपता बढ़ाने की दिशा में करना। देशी उद्योग, एमएसएमई, स्टार्ट-अप्स, शैक्षणिक संस्थानों को रक्षा खरीद प्रक्रिया में और अधिक शामिल करना। साथ ही आत्मनिर्भर भारत की दिशा में, घरेलू क्षमताओं को बढ़ाने व तकनीक हस्तांतरण को प्रोत्साहित करना।

निर्णय-प्राधिकरण का विकेंद्रीकरण, त्वरित प्रक्रिया की मंजूरी की दिशा में कदम बढ़ाना। देरी-दंड को विकास-चरण की परियोजनाओं में कम किया गया, ताकि नवाचारी परियोजनाओं को प्रतिस्पर्धात्मक बाधाओं से राहत मिले। सीमित निविदा आदि की सीमा बढ़ाना, कुछ पूर्व अनापत्ति प्रमाण-पत्रों की जरूरत समाप्त करना। खरीद प्रक्रियाओं को आधुनिक सार्वजनिक-खरीद मानदंडों से संरेखित करना। तकनीक उपयोग, डिजिटलीकरण आदि को बढ़ावा देना ताकि निष्पक्षता और जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। विशेष रूप से उच्च-मूल्य वस्तुओं/सेवाओं की खरीद में समझौतों को प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया अधिक बनाने का प्रयास। स्वदेशीकरण की सकारात्मक सूची आदि के माध्यम से आयात-निर्भरता कम करना। नया मैनुअल 1 नवम्बर 2025 से प्रभावी होगा, 31 अक्टूबर 2025 से पहले जारी निविदाओं पर पुरानी नियमावली लागू रहेगी। 

नई रक्षा खरीद नियमावली भारत की सुरक्षा नीति में परिवर्तन का प्रतीक है। यह नीति न केवल तीनों सेनाओं को नई शक्ति प्रदान करेगी बल्कि आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने की दिशा में भी निर्णायक कदम है। यदि इसे प्रभावी ढंग से लागू किया गया, तो आने वाले दशक में भारत रक्षा क्षेत्र में न केवल आत्मनिर्भर होगा, बल्कि वि मंच पर एक मजबूत रक्षा उत्पादक राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित करेगा।



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