आतंकवाद के खिलाफ
पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर बेनकाब करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का पहला समूह बुधवार को विदेश दौरे पर रवाना हो गया।
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पहलगाम हमले और भारत-पास्तिान सैनिक संघर्ष के बाद विदेशों में प्रतिनिधिमंडल भेजने की कार्रवाई को कूटनीतिक या राजनयिक पहल के रूप में रेखांकित किया जा सकता है। वास्तव में इसका उद्देश्य विश्व समुदाय को भारत की स्थिति से परिचित कराना, पाकिस्तान की प्रायोजित आतंकवाद की काली करतूत बताना और विश्व जनमत को अपने पक्ष में करना है। भारत इस पहल के जरिए आतंकवाद के मसले पर पूरी दुनिया को एकजुट करना चाहता है।
इस तरह के राजनयिक प्रयासों से पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव बनाकर सीमा पार आतंकवाद को नियंत्रित किया जा सकता है। वैश्विक आतंकवाद ऐसी समस्या है जिसके विरुद्ध को एक देश लड़ाई नहीं लड़ सकता। लोगों को याद रखना चाहिए कि 11 सितम्बर, 2001 को जब अमेरिका के र्वल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादी हमला हुआ था तब राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की घोषणा की थी।
अमेरिका ने अलकायदा और ओसामा बिन लादेन को खत्म करने के लिए अफगानिस्तान पर हमला करके उसे तबाह कर दिया था। लेकिन क्षोभ इस बात होता है कि अमेरिका और पश्चिमी देश आतंकवाद के मुद्दे पर अलग-अलग नजरिया रखते हैं, जो उनके अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों से प्रेरित हैं। जब अमेरिका और पश्चिमी देशों पर आतंकवादी हमले होते हैं तो उन्हें खत्म करने के लिए वे किसी भी सीमा तक चले जाते हैं, लेकिन जब गैर-पश्चिमी देशें पर आतंकवाद का कहर फूटता है तो खामोश हो जाते हैं।
भारत तो दशकों से सीमा पार आतंकवाद से पीड़ित है। अनेकों बार भारत ने पाकिस्तान के आतंकवाद में संलिप्त होने का पुख्ता प्रमाण भी दिया है, लेकिन विश्व समुदाय कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सका है। पाकिस्तान वैश्विक आतंकवाद का केंद्र है। पूरी दुनिया जानती है। इसके बावजूद अमेरिका उसे आर्थिक मदद और व्यापारिक रिश्ते बनाए रखता है। याद रखना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में विश्व समुदाय का सहयोग बहुत महत्त्व रखता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल के विदेश दौरे से अमेरिका और पश्चिमी देश आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में एकजुटता दिखाएंगे।
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