हथियार छोड़ने का समय

Last Updated 18 Apr 2024 01:05:43 PM IST

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में मंगलवार को हुई एक मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने 29 नक्सलवादियों को मौत की नींद सुला दिया।


हथियार छोड़ने का समय

सरकार की दृष्टि से सुरक्षा बलों का यह कारनामा इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि एक तो इसमें बड़ी संख्या में नक्सलवादियों को मारा गया है, और दूसरे, मारे गए नक्सलियों में उनके नामी गिरामी ईनामी कमांडर भी शामिल हैं। 19 अप्रैल को प्रथम चरण के मतदान से पूर्व सुरक्षा बलों की इस सफलता पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बड़ी संख्या में नक्सलियों का सफाया करने वाले सुरक्षा बलों के जवानों को बधाई देते हुए कहा कि मोदी सरकार देश को नक्सलवाद की बुराई से मुक्त कराने के लिए प्रतिबद्ध है।

इसे विचारधारात्मक धरातल पर एक बड़ी त्रासदी ही कहा जाएगा कि जो आंदोलन भारत के दबे-कुचले मानवीय समूहों को उनका हक तथा गरिमापूर्ण जीवन दिलाने के लिए पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और सामंतवाद को सशस्र संघर्ष के बल पर उखाड़ फेंक देना चाहता था और शोषित-वंचित तबकों को जल, जंगल और जमीन और खनिज संपदा का आधिपत्य दिलाना चाहता था, अब वह अपनी समाप्ति की घड़ियां गिन रहा है।

नक्सलवाद की आरंभिक सोच यही थी कि जिस तरह से सोवियत संघ में लेनिन के नेतृत्व में साम्यवादी क्रांति सफल हुई और उसके बाद जिस तरह से माओ-त्से-तुंग के नेतृत्व में सशस्र संघर्ष के बल पर चीन में साम्यवादी सत्ता स्थापित हुई, उसी तरह भारत में भी की जा सकती है। इसी विचार को आधार बिंदु मानकर उन्होंने अपने संघर्ष को आगे बढ़ाया। कम्युनिस्ट समूहों में उग्र मतभेदों, टूट-फूट और विभाजनों के बावजूद देश के उन हिस्सों में जहां राज्य की भुजा आसानी से पहुंचने में सक्षम नहीं थी, वहां अपना प्रभाव भी बढ़ाया।

एक समय ऐसा आया जब देश के दस राज्यों के 180 जिले नक्सलवाद से प्रभावित घोषित किए गए लेकिन नक्सलवादी नेतृत्व कभी भी ठीक प्रकार से यह नहीं समझ सका कि सोवियत संघ और चीन में जैसी आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों के बीच कम्युनिस्ट संघर्ष को सफलता मिली थी, भारत में वैसी परिस्थितियां नहीं थीं। भारत का समाज जाति, धर्म, क्षेत्र आदि जैसे विभाजनों से ग्रस्त था, उसमें इस विचारधारा के आगे पनपने की कोई गुंजाइश नहीं थी और परिणाम सामने है।

बेहतर होगा कि नक्सलवादी अपने संघर्ष सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर करें ताकि जनता जागरूक हो सके और लोकतंत्र के भीतर ही जनता सकारात्मक भूमिका का निर्वहन कर पाए।



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