नशे के खात्मे का अभियान चले निरंतर

Last Updated 10 Mar 2024 01:46:54 PM IST

अनेक प्रयासों के अनुभवों से सीखते हुए स्पष्ट है कि शराब और हर तरह के नशे को टिकाऊ तौर पर दूर करने के लिए ऐसे जन अभियान की जरूरत है जो निरंतरता से चल सकें। अनेक स्थानों पर नशा दूर करने में सफलता तो मिली पर टिक नहीं सकी।


नशे के खात्मे का अभियान चले निरंतर

अत: जरूरी है कि गांवों और बस्तियों के लिए मुख्य रूप से महिलाओं के नेतृत्व में नशा-विरोधी समितियां बना ली जाएं जो निरंतरता से नशा न्यूनतम करने का प्रयास करें।

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सीधे लोगों के बीच जाया जाए और परिवार, समुदाय के स्तर पर चेतना और भावना विकसित कर नशे को छोड़ने के लिए प्रेरक स्थिति पैदा की जाए। परिवार, पत्नी, बच्चों, बुजुर्ग माता-पिता, मित्र, पड़ौसी, भाई-भाभी, जिसकी भी बात कोई नशा करने वाला व्यक्ति अधिक सुनता है, के माध्यम से उसे समझा कर नशे से दूर किया जाए। एक बार कोई व्यक्ति शराब (या नशा) छोड़ दे, तो इसके लिए उसे सम्मानजनक माहौल दिया जाए। शाम के वक्त उसे किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम, विचारों के आदान-प्रदान, भजन-कीर्तन, रचनात्मक या मनोरंजक कार्यक्रम में व्यस्त रखा जाए ताकि उसका ध्यान शराब की ओर न जाए। शराब और अन्य नशे के बारे में तथ्यात्मक, प्रमाणिक जानकारी का प्रसार भी आवश्यक है। कुछ लोग कहते हैं कि शराब छोड़ना कठिन है पर हजारों लोगों ने पक्का मन बनाकर, दृढ़ निश्चय कर शराब छोड़ी है। मूल बात है अपने बच्चों और परिवार की भलाई को ध्यान में रखकर अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इच्छाशक्ति को पक्का करना। हां, फिर भी अगर जरूरत हो तो डाक्टर से दवा और सलाह ली जा सकती है। हर तरह का नशा घातक है। अत: शराब के साथ ड्रग्स, सिगरेट, बीड़ी, गुटका, तंबाकू, अफीम, गांजा आदि से भी दूर रहना चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की शराब एवं स्वास्थ्य स्टेट्स रिपोर्ट (2018) के अनुसार विश्व में 2016 में शराब से 30 लाख मौतें हुई। 2016 में शराब के कारण हुई मौतों में से 28.7 प्रतिशत चोटों के कारण हुई, 21.3 प्रतिशत पाचन रोगों के कारण हुई, 19 प्रतिशत हृदय रोगों के कारण हुई, 12.9 प्रतिशत संक्रामक रोगों से हुई और 12.6 प्रतिशत कैंसर से हुई। 20 से 29 आयु वर्ग में होने वाली मौतों में से 13.5 प्रतिशत शराब के कारण होती हैं। सड़क दुर्घटनाओं में शराब के कारण 2016 में 370000 मौतें हुई। पिता (या अभिभावक) के शराब पीने से बच्चों पर कई दुष्परिणाम होते हैं जैसे अवसाद, भावनात्मक क्षति, अकेलापन। इसके अतिरिक्त बच्चों की शिक्षा और  सीखने की क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। उनके द्वारा भी नशा करने की संभावना बढ़ती है।
हाल के वर्षो में भारतीय समाज में जो बहुत चिंताजनक बदलाव आया है, वह यह है कि शराब की बिक्री और उपभोग तेजी से बढ़े हैं। एक कुप्रयास कुछ वर्षो से हो रहा है और वह यह है कि शराब के विरुद्ध जो सामाजिक मान्यता सदा से भारतीय समाज में रही है, उस मजबूत और सार्थक परंपरा को ही समाप्त कर दिया जाए। शराब और अन्य तरह के नशे के विरुद्ध जो सामाजिक मान्यता बहुत पहले से रही है, उसे समाप्त नहीं होने देना चाहिए, बल्कि उसे तो और मजबूत करने की जरूरत इस समय है।

केवल कानूनी कार्यवाही से शराब के नशे को दूर नहीं किया जा सकता है, इसके साथ नशे के विरुद्ध व्यापक जन-अभियान की भी जरूरत है। यदि पिछले कुछ दशकों को देखें तो समय-समय पर शराब के विरुद्ध बहुत सफल जन-आंदोलन भी हुए हैं। छत्तीसगढ़ के दल्ली राजहरा क्षेत्र में हजारों लौह अयस्क खनन मजदूरों ने अपने श्रमिक संगठन के बहुत प्रेरणादायक माहौल में शराब को छोड़ा। समय-समय पर उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा आदि अनेक राज्यों से भी शराब विरोधी आंदोलनों की सफलता के समाचार मिले।

ऐसे सब जन अभियान और आंदोलन बहुत सार्थक तो रहे हैं, पर बड़ा सवाल यह है कि क्या उनकी निरंतरता को बनाए रखा जा सकता है? कुछ समय बाद आंदोलन और अभियान ढीले पड़ते हैं तो शराब की कमाई से जुड़े तत्व फिर हावी हो जाते हैं। शराब का ठेका हटा दिया गया तो भी वे अन्य तरह से अवैध शराब बेचने लगते हैं। अत: जरूरी है कि जहां आंदोलन होते हैं और शराब के विरुद्ध लोग एकजुट हों वहां स्थायी तौर पर नशा विरोधी समितियों का गठन हो जाना चाहिए और इनकी मीटिंग भी नियमित तौर पर होनी चाहिए ताकि नशे के विरुद्ध जो चेतना लोगों में आई है, वह बनी रहे।

गरीब व्यक्ति यदि शराब की लत को पकड़ लेता है तो फिर उसके परिवार में रोटी-सब्जी और बच्चों के स्कूल की फीस तक उपलब्ध करवाने में कठिनाई बहुत बढ़ जाती है। इस कारण परिवार में लड़ाई-झगड़े भी अधिक होते हैं, महिलाओं से मारपीट होती है। गरीब लोगों का स्वास्थ्य पहले से कमजोर होता है। अत: उन पर शराब का प्रतिकूल असर और अधिक होता है।
एक स्पष्ट नीति यह होनी चाहिए कि किसी भी गांव में यदि 50 प्रतिशत व्यक्ति शराब की दुकान या ठेके के विरुद्ध आवाज उठाते हैं तो वहां शराब का ठेका नहीं खुल सकता। यदि यह पहले से खुला है तो 50 प्रतिशत लोगों के विरोध का हस्ताक्षरित आवेदन मिलने पर इसे बंद करना चाहिए। इसके साथ ही जहां भी अवैध शराब बिकती है उसके विरुद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

शराब के हिंसा, अपराध और नजदीकी रिश्ते या संबंध टूटने के रूप में बहुत गंभीर सामाजिक दुष्परिणाम भी हैं। कुछ अध्ययनों ने शराब के इन सामाजिक दुष्परिणामों की आर्थिक कीमत लगाने का प्रयास किया है, जिससे पता चलता है कि शराब के सामाजिक दुष्परिणाम कितने महंगे पड़ते हैं : 1) यूरोपियन यूनियन के लिए 2003 में लगाए गए अनुमान में शराब के सामाजिक दुष्परिणामों की कीमत 125 अरब यूरो लगाई गई, 2) यूके के लिए 2009 में लगाए गए अनुमान में शराब के सामाजिक दुष्परिणामों की कीमत 21 अरब पौंड लगाई गई, 3) अमेरिका के लिए 2006 में शराब के सामाजिक दुष्परिणामों की कीमत 233 अरब डॉलर लगाई गई, तथा 4) दक्षिण अफ्रीका के लिए 2009 में शराब के सामाजिक दुष्परिणामों की कीमत 300 अरब रैंड लगाई गई जो कि सकल राष्ट्रीय उत्पाद के 10 से 12 प्रतिशत के बराबर थी। निश्चय ही ये आंकड़े अपने में बहुत महत्त्वपूर्ण तो हैं ही पर इसके आगे यह भी कहना चाहिए कि शराब से उत्पन्न हिंसा में जितने लोग मारे जाते हैं, या नजदीकी रिश्ते बिगड़ जाते हैं, उससे उत्पन्न गहरे दुख-दर्द की तो शायद कोई कीमत लगाई ही नहीं जा सकती। यह क्षति तो असहनीय हद तक गहरा दुख-दर्द देने वाली है।

भारत डोगरा


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