Manipur Violence पर कड़े फैसले की दरकार

Last Updated 26 Jun 2023 01:04:50 PM IST

मणिपुर (Manipur) के हालात संभाले नहीं संभल रहे हैं। उपद्रवियों ने नई दिल्ली में सरकार की तरफ से बुलाई सर्वदलीय बैठक के नतीजों का इंतजार तक नहीं किया।


Manipur Violence पर कड़े फैसले की दरकार

वहां एक मंत्री के गोदाम को फूंक दिया और उनके घर फूंकने की कोशिश की। यह स्थिति तब है जबकि मणिपुर में इस वक्त रिकार्ड संख्या में सुरक्षाबल और अधिकारी तैनात हैं। विपक्ष का जोर है कि वहां एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजा जाए, जो कूकी एवं मैइती समुदाय से बात करे। ये सब प्रयास ऐसे समय अपेक्षित होते हैं और किए भी जाने चाहिए। इससे उस हिंसा पीड़ित राज्य को संदेश जाता है कि उनके मुद्दों को लेकर पूरा देश चिंतित है।

भारत जैसा कोई भी लोकतांत्रिक राज्य किसी सख्ती से पहले इन उपायों को आजमाता है। उपायों को बगैर आजमाए हुए उन्हें विफल करार नहीं दिया जा सकता। लेकिन मणिपुर में उपद्रव का जो ट्रेंड दिख रहा है, उनसे कुछ बातें जाहिर होती हैं। पहली, राज्य की सरकार और उसके मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह जनता का भरोसा खो चुके हैं। बहुसंख्यक मैइती मानते हैं कि वे सरकार का समर्थन करने के बावजूद मर रहे हैं तो कूकी समुदाय भी उन पर भरोसा नहीं करते।

दूसरी, हिंसा में जिस तरह के हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है, वह भयावह है।  ये सरकारी संस्थानों से लूटे गए असलहे के अलावा हैं। आशंका है कि इनमें बाहरी हथियार भी हैं। यह गृहयुद्ध की स्थिति है। तीसरी बात यह कि हिंसाग्रस्त क्षेत्रों से दोनों ही समुदायों के लोगों का पलायन हो रहा है। यानी कूकी और मैइती दोनों ही अपनी सुरक्षा के लिए घर छोड़ रहे हैं। ये हालात पूर्वोत्तर के बड़े संकट को दोहराते लगते हैं, जब सरकार को किसी बड़े ऑपरेशन की जरूरत होती है।

यह ऑपरेशन अपनी ही पार्टी की सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने तक हो सकते हैं। इन्हीं परिस्थितियों में 1980 के दशक में पंजाब में केंद्र ने अनुच्छेद 356 के तहत संवैधानिक उपायों का सहारा लिया था और दरबारा सिंह सरकार को तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बर्खास्त कर दिया था। इसके पहले मिजोरम में उन्होंने असाधारण सख्ती की थी।

मणिुपर के हालात जैसे बिगड़ रहे हैं, उन्हें देखते हुए केंद्र सरकार को ऐसे कदम उठाने की अपरिहार्यता लगती है। बहरहाल, यह बात एक वयस्क लोकतंत्र के आचरण के अनुरूप है कि सभी दल दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर समाधान के प्रति गंभीर हैं और इसके उपाय भी सुझा रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री भी हर दिन इस मसले पर अपडेट होते रहते हैं।



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