ईएमआई होगी महंगी

Last Updated 09 Feb 2023 01:53:03 PM IST

भारत में मुख्य मुद्रास्फीति (मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र की महंगाई) में क्रमिक आधार पर लगातार कमी आने और 6.25 प्रतिशत के ऊंचे स्तर तक पहुंच चुकने के मद्देनजर रेपो दर (नीतिगत दर) में और वृद्धि की जरूरत सीमित होने के विचार के बरक्स केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक ने बुधवार को रेपो दर 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत करने का फैसला किया।


ईएमआई होगी महंगी

महंगाई को लक्ष्य के अनुरूप दायरे में लाने के लिए आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष की आखिरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में एक बार फिर नीतिगत दर-रेपो रेट-में वृद्धि की है। रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी फौरी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्रीय बैंक से कर्ज लेते हैं। इसमें वृद्धि का मतलब है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों से लिया जाने वाला कर्ज महंगा हो जाएगा यानी मौजूदा ऋण की मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ेगी।

केंद्रीय बैंक का कहना है कि आने वाले समय में नीतिगत दर में और भी वृद्धि की जा सकती है क्योंकि उसका आकलन है कि मुख्य मुद्रास्फीति ऊंची बनी रह सकती है। गौरतलब है कि एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स का आकलन था कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी की अब जरूरत नहीं है क्योंकि भारत में मुख्य मुद्रास्फीति लंबे समय तक उच्च स्तर पर रहने के बाद 2022 की दूसरी छमाही से लगातार नीचे आ रही है। लेकिन रिजर्व बैंक ने इस आकलन के विपरीत फैसला किया है, तो इसलिए कि वह वैश्विक परिदृश्य की चुनौतियों को लेकर सतर्क है।

वह चाहता है कि महंगाई का कारण बनने वाले कारकों पर अंकुश जरूरी है। रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) के स्तर पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे बाहरी कारकों से खुदरा मुद्रास्फीति लगातार 11 माह तक संतोषजनक स्तर से ऊपर रही लेकिन नवम्बर, 2022 में यह 6 प्रतिशत से नीचे आ गई। दिसम्बर, 2022 में यह 5.72 प्रतिशत के स्तर पर थी।

ऐसे में एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स को लगा कि रेपो में वृद्धि की जरूरत नहीं है। लेकिन केंद्रीय बैंक का मानना है कि महंगाई में कमी के संकेत के बीच मुख्य खुदरा मुद्रास्फीति ऊंची बनी हुई है, जिसे नीचे लाने के लिए प्रतिबद्ध रहना होगा। भू-राजनीतिक तनाव की वजह से पैदा हुई अनिश्चितताएं, वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव, गैर-तेल जिंसों की कीमतों में तेजी और कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव निश्चित ही वे कारक हैं, जिनसे सचेत रहना होगा।



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