घृणा भाषण के विरुद्ध
देश में जारी असहिष्णुता के माहौल के बीच उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने केरल में कैथोलिक समुदाय के आध्यात्मिक नेता संत कुरियाकोस इलियास चावरा की 150वीं पुण्यतिथि के अवसर पर दूसरे धर्मो की बुराई करने और समाज में विभाजन पैदा करने के प्रयासों के विरुद्ध असंतोष जाहिर किया और कहा कि प्रत्येक नागरिक को देश में अपने धार्मिक विश्वासों का पालन करने का अधिकार है।
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उन्होंने यह भी कहा कि अपने धर्म का पालन करें, लेकिन घृणा भाषण और लेखनी से दूर रहें। धर्मनिरपेक्षता प्रत्येक भारतीय के रक्त में है। उपराष्ट्रपति नायडू के उद्बोधन का स्वागत किया जाना चाहिए। वास्तव में उनके इस विचार को देश में अल्पसंख्यक समूहों को कुछ कथित संतों द्वारा लगातार निशाना बनाए जाने के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। देश के शीषर्स्थ पद पर बैठे नायडू पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने अल्पसंख्यक समूहों के विरुद्ध दिए जा रहे घृणा भाषणों की आलोचना की है।
पिछले दिनों हरिद्वार और रायपुर में आयोजित हिंदू संस्था धर्म संसद में कथित संत धर्म दास, साध्वी अन्नपूर्णा और कालीचरण ने अपने भाषणों में मुसलमानों के प्रति विद्वेष भरी बातें कही थीं। इन संतों ने इस्लाम को देश के लिए खतरा बताया और हिंदुओं को एकजुट होने का आह्वान भी कर दिया। देश के कुछ प्रबुद्ध जनों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इन संतों के विरु द्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की है। अनेक वरिष्ठ वकीलों ने भी प्रधान न्यायाधीश से इस मसले का स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया है।
भारत धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी देश है, जिसका उल्लेख उपराष्ट्रपति नायडू ने अपने उदबोधन में किया है। बहुलवाद का अर्थ उस समाज या सरकार से है जो विभिन्न अल्पसंख्यक समूहों को बहुसंख्यक समूहों के साथ रहकर अपनी सांस्कृतिक पहचान, मूल्यों तथा परंपराओं को बचाए रखने की स्वीकृति प्रदान करता है। विविधता में एकता भारतीय राज्य की विशिष्टता है। जाहिर है कि घृणा भाषणों और लेखनी से देश की यह विशिष्टता कमजोर होती है। उपराष्ट्रपति नायडू ने अपने उद्बोधन में इसी खतरे के प्रति लोगों को सतर्क किया है। देश की किसी भी गंभीर समस्या या मुद्दों पर शीषर्स्थ राजनीतिक व्यक्तियों के उद्बोधन का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।
किसी विशेष समुदाय के प्रति घृणा भाषण या लेखन को रोकने के लिए देश के अन्य शीषर्स्थ राजनीतिक व्यक्तियों को भी आगे आकर इस तरह की नकारात्मक और समाज विरोधी प्रवृत्तियों की आलोचना करनी चाहिए। हालांकि संत कालीचरण को गिरफ्तार किया जा चुका है और हरिद्वार की घटना के लिए उत्तराखंड की सरकार ने एसआईटी से जांच कराने की घोषणा की है लेकिन इस तरह के विभाजनकारी भाषणों की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को एकजुट होकर ठोस कदम उठाने चाहिए।
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