शांति और स्थायित्व के लिए
क्षेत्रीय भू राजनीतिक परिदृश्य की दृष्टि से नवम्बर के महीने को काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
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इस महीने दो महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय बैठक होने जा रही हैं, जिसके केंद्र में भारत है। पहली बैठक अफगानिस्तान के संदर्भ में है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की पहल पर 30 नवम्बर को नई दिल्ली में यह बैठक हो रही है। रूस और ईरान के साथ अन्य क्षेत्रीय देशों ने इस सम्मेलन में भाग लेने पर अपनी सहमति जताई है।
पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ ने स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान इस बैठक में शामिल नहीं होगा। मोईद युसूफ का तर्क यह है कि पाकिस्तान इस तरह के किसी भी सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेगा जिसमें तालिबान का प्रतिनिधि शामिल नहीं हो। युसूफ के इस रुख से पता चलता है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान को अपने संरक्षित राज्य के रूप में देखता है। नई दिल्ली में आयोजित क्षेत्रीय देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक का प्रमुख लक्ष्य अफगानिस्तान की सुरक्षा और स्थायित्व पर विचार-विमर्श करना है।
अफगानिस्तान में तालिबान आतंकवादियों के कब्जे के बाद वहां के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के मुद्दे पर आयोजित इस बैठक में पाकिस्तान के शामिल न होने से भारत निराश है। विदेश मंत्रालय को चीन के शामिल होने के जवाब का भी इंतजार है, लेकिन रूस, ईरान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान की बैठक में हिस्सा लेने की सहमति दर्शाती है कि अफगानिस्तान में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है और बराबर रहेगी। इस सम्मेलन में शामिल होने वाले अन्य मध्य एशियाई देशों के रुख से पता चलता है कि वे अफगानिस्तान की बिगड़ी हुई स्थिति से चिंतित हैं और भारत के साथ मिलकर वहां स्थायी शांति व स्थायित्व का रास्ता निकालना चाहते हैं।
अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत के लिए महत्त्वपूर्ण बात यह है कि नई दिल्ली को रूस के साथ समन्वय बिठाना होगा। इस महीने के अंत में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर 2 प्लस 2 वार्ता के जरिये अपने रूसी समकक्षों के साथ बैठक करने वाले हैं। रूसी राष्ट्रपति पुतिन अगले महीने नई दिल्ली की यात्रा पर आ रहे हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी और पुतिन की मुलाकात के बाद अफगानिस्तान की तस्वीर साफ हो पाएगी।
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