निकलना चाहिए समाधान
किसानों ने केंद्र सरकार का बातचीत का प्रस्ताव स्वीकार कर 31 दिन से चले आ रहे गतिरोध को खत्म करने की दिशा में सकारात्मक रुख दिखाया है।
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40 किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोच्रे ने सरकार को 29 दिसम्बर को सुबह 11 बजे वार्ता का प्रस्ताव भेजा है। पहले भी यह कहा गया था कि किसानों को हरसंभव सरकार से बातचीत करनी चाहिए या संवाद की खिड़की खुली रखनी चाहिए। वार्ता को नकारने से न केवल खटास पैदा होगी वरन किसान और सरकार दोनों के इकबाल को भी ठेस पहुंचेगी। उम्मीद है कि बातचीत का रास्ता खुलने से इस समस्या के हल निकलने में आसानी होगी। यह भी ध्यान देना होगा कि कोई भी पक्ष अड़ियल रुख अपनाने के बजाय बातचीत और व्यवहार में लचीलापन लेकर आमने-सामने बैठे। सिर्फ दिखावे के लिए बैठने से अच्छा है कि ‘न तुम हारो न हम जीते’ वाले फलसफे पर अमल किया जाए।
इससे पहले छह दौर की बातचीत सरकार से किसान संगठनों की हो चुकी है, मगर नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है। देखना है इस बार सरकार अपने दिलोदिमाग में क्या लेकर आ रही है और किसानों के मन में तीनों खेती बिल निरस्त करने से अलग भी कुछ खाका है? वैसे किसानों की यह चेतावनी सरकार के लिए थोड़ी असहज करने वाली हो सकती है कि अगर बुधवार को वार्ता सफल नहीं हुई तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा। यानी कई प्रमुख मागरे को रोका जाएगा। ऐसा कहकर किसान संगठन अपनी हताशा को ही परिलक्षित करते दिखते हैं।
प्रमुख मागरे पर अवरोध डालना या वैसे कृत्य करना जिससे आमजन को भारी दिक्कतें पेश आएं; कहीं से भी न्यायोचित नहीं कहा जा सकता है। जब तक खुले और साफ मन से दोनों पक्ष एक-दूसरे के समक्ष नहीं आएंगे तब तक किसी तरह के समाधान की उम्मीद करना बेमानी होगी। चूंकि प्रधानमंत्री सीधे तौर पर अब पूरे गतिरोध के केंद्र में हैं तो उन्हें खास भूमिका निभानी होगी। जब वो हर राज्यों के किसानों और उनके संगठनों से संवाद कर सकते हैं तो उन्हें बड़ा दिल दिखाते हुए किसानों से भी वार्ता करनी चाहिए। इससे कम-से-कम इतना जरूर होगा कि किसानों का विश्वास मजबूत होगा और उन्हें यह कहने का भी मौका नहीं मिलेगा कि सरकार हमें गुमराह कर रही है। देखना है, बुधवार का दिन मंगलकारी साबित होता है नहीं।
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