शतरंज में रचा इतिहास

Last Updated 01 Sep 2020 12:24:00 AM IST

भारत ने पहली बार ऑनलाइन आयोजित किए गए शतरंज ओलंपियाड में रूस के साथ संयुक्त रूप से गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है।


शतरंज में रचा इतिहास

रूस के शतरंज में दबदबे से हम सभी अच्छे से वाकिफ हैं। 1924 से चल रहे शतरंज ओलंपियाड में रूस कुल 24 बार (18 बार सोवियत संघ के तौर पर) चैंपियन बना है। इसके बावजूद ऐसी टीम के साथ चैंपियन बनना बहुत मायने रखता है। इससे पहले भारत सिर्फ एक बार 2014 में कांस्य पदक जीत सका है। इस ओलंपियाड के फाम्रेट में बदलाव ने भी भारत के चैंपियन बनने में अहम भूमिका निभाई। पहले इस ओलंपियाड में देश के सर्वश्रेष्ठ चार खिलाड़ी खेलते थे। उनकी बाजियां क्लासिकल शतरंज की हुआ करतीं थीं। पर इस बार इस ओलंपियाड में 163 देशों की टीमें भाग ले रहीं थीं। इसलिए इसका रैपिड आधार पर आयोजन किया गया।

इस बार किए गए एक और प्रमुख बदलाव, जिसने भारत के गोल्ड मेडल तक पहुंचने में अहम भूमिका निभाई, वह है मुकाबले में चार सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के बजाय टीम में अंडर-20 दो बालक और बालिका खिलाड़ियों के साथ दो महिला खिलाड़ियों को शामिल करना। फॉर्मेट के इस बदलाव की वजह से कई दिग्गज टीमों की ताकत कम हो गई। भारत में पिछले करीब एक-डेढ़ दशक में शतरंज का जबर्दस्त विकास हुआ है और देश में बहुत ही कम उम्र में खिलाड़ी ग्रैंडमास्टर बनने लगे हैं। इस शतरंज ओलंपियाड में भारत पोलैंड को और रूस अमेरिका को हराकर फाइनल में पहुंचा था। फाइनल में भारत और रूस के साथ पहला मुकाबला सभी छह बाजियां ड्रा होने से 3-3 से बराबर रहा।

दूसरे मुकाबले में विनाथन आनंद, कप्तान विदित गुजराती और डी हरिका ने अपनी  बाजियां ड्रा खेल लीं। अब सारा दारोमदार जूनियर खिलाड़ी दिव्या देशमुख और निहाल सरीन पर था। दिव्या अपनी प्रतिद्वंद्वी पोलिना शुवालोवा क खिलाफ जीत की स्थिति में थीं और निहाल बाजी ड्रा कराने की स्थिति में थे। लेकिन एकाएक इन दोनों का इंटरनेट कनेक्शन सर्वर से टूट जाने पर समय के दवाब में बाजी हार गए और रूस को चैंपियन घोषित कर दिया गया। इस पर भारत ने जब प्रोटेस्ट किया, तो फीडे ने दोनों टीमों को संयुक्त विजेता घोषित कर दिया। इस सफलता से इतना तो साफ है कि शतरंज में देश का भविष्य बेहद उज्जवल है।



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