प्रवासी श्रमिकों की व्यथा

Last Updated 11 May 2020 01:42:26 AM IST

कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉक-डाउन की सबसे अधिक मार प्रवासी श्रमिकों को झेलनी पड़ रही है।


प्रवासी श्रमिकों की व्यथा

इसका सबसे दुखदायी पहलू यह है कि अब यह लॉक-डाउन गरीब श्रमिकों की जानें भी लेने लगा है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में रेल की पटरियों पर सो रहे 16 प्रवासी श्रमिकों की मालगाड़ी की चपेट में आने से दर्दनाक मौत हो गई। यह बीते शुक्रवार की बात है। ये श्रमिक घटनास्थल से करीब 45 किलोमीटर दूर जालना से पैदल चलकर यहां पहुंचे थे। इतनी दूर पैदल चलने के कारण ये सभी थकान से चूर थे और सुस्ताने के लिए यहां रुके थे। थोड़ी देर में इन्हें नींद आ गई और पटरियों पर ही सो गए थे। इन्हें मालूम था कि लॉक-डाउन के कारण सभी रेलगाड़ियां बंद हैं।

इसी कारण ये इन पटरियों पर सो गए। इस हादसे की एक वीडियो क्लिप में पटरियों पर श्रमिकों के शव दिखाई दे रहे हैं और शवों के पास उनका थोड़ा-बहुत सामान और साथ में रोटियां बिखरी पड़ीं थीं। निश्चित तौर पर यह दृश्य उन श्रेष्ठ जनों को भी विचलित कर देगा जो, इस सत्यवचन पर विश्वास करके चलते हैं कि शरीर नर है और जो जन्म लिया है वह मरेगा भी। अभी इन श्रमिकों के लहू पटरियों पर सूखे भी नहीं थे कि पिछले शनिवार को मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले की सीमा पर एक सड़क हादसे में पांच मजदूरों की मौत हो गई।

ये मजदूर हैदराबाद से उत्तर प्रदेश के एटा और झांसी लौट रहे थे। लॉक-डाउन की वजह से रोजगार के बिना प्रवासी मजदूरों का बड़े शहरों में जीवन-यापन करना कठिन हो गया है। लिहाजा यह मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव लौट रहे हैं। वास्तव में लॉक-डाउन की घोषणा के अगले दिन से ही प्रवासी मजदूरों की मुसीबतों भरे जो दृश्य उभरने शुरू हुए थे, वे बेहद मार्मिक और विचलित करने वाले थे। केंद्र और राज्य सरकारों की तमाम घोषणाओं के बावजूद इन श्रमिकों को न भोजन मिल पा रहा है और न रहने का कोई आश्रय।

इसलिए इन श्रमिकों का अपने गृह प्रदेश की ओर पलायन जारी है। इसका अर्थ यह हुआ कि सभी राज्य सरकारें श्रमिकों की जिम्मेदारी लेने से बच रहीं हैं। केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों के पास मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। सरकार की अदूरदर्शिता के कारण लॉक-डाउन से कोरोना निरोधक पूरी व्यवस्था ही खतरे में पड़ गई है। अगर सरकार कोरोना को हराना चाहती है तो उसे युद्धस्तर पर मजदूरों के इस पलायन को रोकना ही होगा।



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