विरोध के अंदेशे भी
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था के कारण अभी कोई विशेष हलचल नहीं दिख रही है।
![]() विरोध के अंदेशे भी |
जाहिर है कि सरकार ने इतना बड़ा कदम उठाने के पहले जो भी प्रशासनिक, सुरक्षागत और राजनीतिक प्रबंधन करना था, वह किया है। इसका परिणाम यह है कि जम्मू-कश्मीर के बाहर की अनेक पार्टयिां जो 370 की विरोधी थी, वह आज पक्ष में मतदान कर रही हैं या मतदान से बाहर जा रही हैं। लेकिन जम्मू-कश्मीर की पार्टयिां खासकर नेशनल कॉन्फ्रेंस-पीडीपी और इस तरह की और छोटी पार्टयिां अनुच्छेद 35 ए और 370 के खात्मे और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में परिणत होने को आसानी से स्वीकार नहीं करेंगी। यह उन सबके बयानों से जाहिर होता है, महबूबा मुफ्ती ने अपने संदेश में कहा है कि जो जम्मू-कश्मीर के साथ वायदा किया गया था उसको संसद ने चुरा लिया है।
उमर अब्दुल्ला भी आक्रोश में हैं, वह संसद में की गई केंद्र की कार्रवाई को विश्वासघात मानते हैं। अन्य छोटे-छोटे दल भी विरोध में लामबंद होने के लिए तैयार हैं। जाहिर है, जब वहां स्थिति सामान्य बनाने की कोशिश होगी, इनको नजरबंदी से बाहर निकाला जाएगा तो ये इसका विरोध करेंगे। उस विरोध से निपटना होगा। देखना होगा कि सरकार उससे कैसे निपटती है। अलगाववादी दुष्प्रचार करेंगे। पाकिस्तान भी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है। हालांकि पाकिस्तान की भूमिका बेगाना शादी में अब्दुल्ला दीवाना की तरह है। उसकी कोई भूमिका नहीं है, फिर भी कश्मीर में अशांति के लिए इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की कोशिश करेगा, जैसा कि उसने खुल कर कहा भी है। अगर निर्णय किया है तो नेताओं ने, हमारे नौकरशाहों ने इन सब पर विचार किया होगा।
कश्मीर के लोगों समझना होगा कि भारत उनका है, वे भारत के हैं; इस भाव से वे रहें। संविधान हमारे यहां सबको समान अधिकार देता है। अनुच्छेद 370 के कारण उनका विकास रु का हुआ था। उनके साथ रोजगार की समस्या थी क्योंकि वहां कोई निवेश नहीं आ रहा था। साथ ही, लाखों लोगों के साथ अन्याय हो रहा था। यह केंद्र का दावा है। इसको भविष्य ही परख सकता है। पर इतना जरूर है कि घाटी में बना तीव्र प्रतिक्रियात्मक वातावरण एक भिन्न किस्म की अराजकता पैदा कर सकता है। इसके लिए नाकेबंदी और नजरबंदी से भिन्न व्यवस्था की दरकार होगी।
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