रोकने पर राजनीति
सामान्यत: किसी नेता को कहीं कार्यक्रम में जाने से रोका जाए उसे बेहिचक अलोकतांत्रिक कदम कहा जाएगा।
रोकने पर राजनीति |
किंतु कई बार सब कुछ पता होने के बावजूद नेता अपनी राजनीति के लिए इस तरह की भंगिमा अपनाते हैं ताकि सरकार खलनायक के रूप में दिखे।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को प्रशासन ने प्रयागराज जाने से क्यों रोका, इस पर अलग-अलग मत हो सकते हैं। प्रयागराज प्रशासन ने कार्यक्रम में हिंसा की आशंका जताई थी, यह सच है। विविद्यालय प्रशासन भी कार्यक्रम को लेकर भयभीत था। जाहिर है, वहां के बारे में कुछ रिपोर्ट रही होंगी।
हालांकि एक पूर्व मुख्यमंत्री कहीं जाए तो उनको यह दायित्व लेना चाहिए कि वहां हिंसा नहीं होगी। किंतु यह भी सच है कि अगर हिंसा होती और प्रशासन कार्रवाई करता तो फिर सरकार के लिए समस्या खड़ी हो जाती। यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनता। इसमें प्रशासन ने यही निर्णय लिया कि अखिलेश को वहां न जाने दिया। सरकार का बयान भी आ गया है कि उनको इसकी सूचना दे दी गई थी। यह सच है तो साफ है कि अखिलेश ने जानते हुए कि प्रशासन उनको वहां जाने नहीं देगा अपने छात्र कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संदेश के लिए जबरन जाने की कोशिश की।
नेता प्राय: ऐसा करते हैं। सरकार का बयान गलत है तो फिर यह अक्षम्य है। किंतु जिस प्रकार का रवैया प्रशासन का दिखा, उसमें यह लगता नहीं कि उन्हें बताया नहीं गया हो। हालांकि उसके बाद सपा के कार्यकर्ताओं ने जिस ढंग का उग्र और हिंसक विरोध किया वह अनुचित है।
सपा को विरोध करने, सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने का पूरा अधिकार है। पर हर राजनीतिक प्रदर्शन अहिंसक एवं शांतिपूर्ण होना चाहिए। प्रदर्शनकारियों की हिंसा के कारण जो हुआ वह पूरे देश के सामने है। अखिलेश ही नहीं हर पार्टी के नेता अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को सीख दें कि किसी भी परिस्थिति में कानून हाथों में न लें। प्रयागराज में जैसा भीषण दृश्य पैदा हुआ, उसके बाद सरकार को यह आरोप लगाने का ठोस आधार मिल गया है कि वे वहां जाते तो इससे ज्यादा हिंसा हो सकती थी।
एक पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश की प्रमुख पार्टी के अध्यक्ष किसी कार्यक्रम में जाने से रोक दिया जाए, यह राजनीति के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। किंतु आज अखिलेश यादव मुख्यमंत्री होते और परिस्थिति यही होती तो क्या वे योगी आदित्यनाथ या ऐसे दूसरे किसी बड़े नेता को कार्यक्रम करने की अनुमति देते? यह ऐसा प्रश्न है, जिसका ईमानदार उत्तर तलाशना चाहिए।
Tweet |