दिल्ली सरकार पर सख्ती
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में राजद्रोह मामले में पटियाला हाउस की एक न्यायालय ने पुलिस और दिल्ली सरकार के खिलाफ जो सख्त रुख अपनाया है वह स्वाभाविक है।
दिल्ली सरकार पर सख्ती |
ऐसे मामलों में मुकदमा चलाने के लिए प्रदेश सरकार की अनुमति आवश्यक है। हालांकि इसमें दिल्ली पुलिस से ज्यादा न्यायालय की नाराजगी दिल्ली सरकार से है। पुलिस ने 14 जनवरी को आरोप पत्र दाखिल कर दिया था। कायदे से उसे उसी समय अनुमति मिल जानी चाहिए थी।
दिल्ली सरकार ने फाइल को अपने पास रोक रखा है। न्यायालय ने पुलिस को 6 फरबरी तक का समय दिया। जब तक दिल्ली सरकार अनुमति नहीं देती पुलिस के हाथ बंधे हुए है। साफ है कि दिल्ली सरकार रणनीति के तहत अनुमति देने से बच रही है। किंतु न्यायालय ने साफ कर दिया है कि इस तरह कोई भी अथॉरिटी फाइल दबाकर नहीं बैठ सकती। देखते हैं दिल्ली सरकार क्या करती है?
दरअसल, फरवरी 2016 में जब जेएनयू में देशविरोधी नारे लगे थे और देश भर में उसके खिलाफ आक्रोश पैदा हुआ, कन्हैया कुमार और दूसरे गिरफ्तार हुए थे तो विपक्ष का रवैया पुलिस और सरकार विरोधी था। उसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल भी शामिल थे। उनके सामने समस्या है कि एक बार आरोपितों का पक्ष लेने के बाद वे मुकदमे की फाइल को कैसे आगे बढ़ा दें।
किंतु यह कानूनी जरूरत है। अगर पुलिस ने आठ पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया, जिसमें 90 गवाहों की सूची और 50 पृष्ठ में संबंधित साक्ष्य व दस्तावेज हैं तो वे हवा में तैयार नहीं हुए होंगे। दिल्ली पुलिस ने जितनी देरी की उससे उसकी कार्यशैली और इरादे पर प्रश्न अवश्य उठेगा, किंतु इसके आधार पर सरकार जरूरी अनुमति वाली फाइल को नहीं रोक सकती। वैसे भी जरूरी है कि इस मामले में न्यायालय का फैसला आए। उसी से सच स्पष्ट हो पाएगा। यह तभी होगा जब न्यायालय में मुकदमा चले।
दूसरे पक्ष को भी अपने बचाव का पूरा अवसर मिलेगा। पूरे देश की नजर इस मुकदमे पर है। इसलिए दिल्ली सरकार को फाइल पर जो भी टिप्पणी करनी हो करे, पुलिस की निंदा-आलोचना करे लेकिन शीघ्र अनुमति दे दे ताकि मुकदमे की कार्रवाई आगे बढ़ाई जा सके। न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई की तिथि 28 फरवरी घोषित की है। उम्मीद करनी चाहिए कि दिल्ली सरकार उस समय तक फैसला कर लेगी। ऐसा न करने का अर्थ होगा वह जानबूझकर मामले को आगे नहीं बढ़ने देना चाहती।
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