चिंता की बात
देशभर में स्वाइन फ्लू या मौसमी इनफ्लुएंजा (एच1एन1) का संहारक खतरा एक बार फिर तेजी से अपना पैर पसार रहा है।
चिंता की बात |
पिछले साल जहां स्वाइन फ्लू के कुल 14, 992 मामले सामने आए थे और कुल 1103 मौतें हुई थी वहीं इस साल 3 फरवरी तक कुल 6701 मामले आ चुके हैं। और 226 मौतें हो चुकी हैं। पिछले साल से इस साल की तुलना करें तो 3 फरवरी तक जो मामले आए हैं, वह इस बार आठ गुना ज्यादा हैं। यह बेहद चिंता की बात है। मौसम में बदलाव के कारण नि:संदेह स्वाइन फ्लू के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं मगर सवाल यह भी पैदा होता है कि क्या वायरल रोगों से लड़ने की व्यक्ति की क्षमता में कमी आई है? या हमारा स्वास्थ्य तंत्र ऐसी संक्रामक बीमारियों मसलन र्बड फ्लू, इबोला या सांस के जरिये फैलने वाले रोगों से प्रतिरोध करने में, उसे नेस्तनाबूद करने में पिछड़ गया है? कारण चाहे जो भी हो, मगर एक बड़ा और चिंतित करने वाली वजह यही कि इस तरह के खतरे क्यों और कैसे बढ़ते जा रहे हैं? आंकड़े बिना शक डरावने हैं। क्योंकि सिर्फ राजधानी दिल्ली ही इससे प्रभावित नहीं है वरन दिल्ली से सटे इलाके समेत राजस्थान, गुजरात, पंजाब भी इसकी गिरफ्त में है। राजस्थान में हालात ज्यादा गंभीर हैं जहां अभी तक कुल मामले 507 आए हैं जबकि होने वाली मौतें 50 से अधिक हैं।
दिल्ली की बात करें तो यहां हालात इसलिए संजीदा हैं क्योंकि एक तो स्वाइन फ्लू के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं (3 फरवरी तक 1019 मामले) और दूसरा यह कि यहां दूसरे प्रांतों के लोग भी अधिकाधिक संख्या में रहते हैं और आवागमन करते हैं। वैसे यहां आधिकारिक तौर पर सिर्फ एक मरीज की मौत की पुष्टि हुई है, किंतु बुखार और अन्य स्वास्थ्य परेशानियों वाले रोगी कम नहीं हो रहे। वैश्विक स्तर पर भी स्वाइन फ्लू के बढ़ते मरीज परेशानी पैदा कर रहे हैं। वि स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मौसमी फ्लू और एच1एन1 से हर साल दुनियाभर में 30-50 लाख लोग ग्रसित होते हैं, जिसमें से 290, 000 से 650,000 लोगों की मौत हर साल हो जाती है। स्वाभाविक है, यह खतरा बड़ा है। और इससे निपटने के लिए हमें भी चाक-चौबंद होना ही होगा। पारंपरिक तरीके से ऐसी बीमारियों से लड़ने के बारे में सोचना हालात को और विकट बना सकता है। सो, सरकार और अस्पताल दोनों को ऐसी परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता और कार्यकुशलता पर ध्यान केंद्रित करने की महती जरूरत है।
Tweet |