सबक लें कंपनियां
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आम्रपाली समूह की संपत्तियां बेचने का आदेश देश भर के सभी भवन निर्माताओं के लिए चेतावनी है कि वो मकान देने के नाम पर धन लेकर बच नहीं सकते।
सबक लें कंपनियां |
अगर आम्रपाली ने उन लोगों को अपने वायदे के अनुसार फ्लैट दे दिया होता तो यह नौबत आती ही नहीं। करीब 46,000 लोगों ने आम्रपाली द्वारा घोषित 15 स्थानों पर फ्लैट के लिए धन दिया था। आठ वर्ष बीत जाने के बावजूद उनको फ्लैट नहीं मिला। इसके बाद उन्होंने उनके खिलाफ मुकदमा करना आरंभ किया। पुलिस थानों द्वारा उपयुक्त कार्रवाई न करने पर करीब 2500 खरीदारों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
अब न्यायालय ने ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) से कह दिया है कि वह आम्रपाली की संपत्तियों को कब्जे में लेकर उन्हें बेचने की प्रक्रिया शुरू करे। दरअसल, आम्रपाली समूह द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत शपथपत्र के अनुसार नोएडा और ग्रेटर नोएडा में कंपनी के 170 से ज्यादा टावर हैं, जहां 46,000 से ज्यादा लोगों ने घर बुक कराए हैं। समूह की अलग-अलग 15 कंपनियों ने इन्हीं के नाम पर फ्लैट खरीदारों से 11,573 करोड़ लिये। मार्केट और विदेशी निवेश से 4,040 करोड़ हासिल किए थे।
इसमें से 10,300 करोड़ आवास परियोजनाओं पर खर्च किए गए, जबकि करीब 2996 करोड़ रु पये व्यवसाय विस्तार योजनाओं में लगाया। इसका फैसला तो न्यायालय ही करेगा कि उन पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाए या नहीं, लेकिन इस तरह फ्लैट के नाम पर लिया गया धन दूसरी मुनाफा वाली परियोजनाओं में निवेश करने वाला आम्रपाली अकेला समूह नहीं है। ज्यादातर भवन निर्माण कंपनियां ऐसा ही करती हैं। इसी कारण आवास परियोजनाओं में देरी होती है या कई परियोजनायें कभी पूरी ही नहीं होती। धन देकर फ्लैट बुक कराने वाले पुलिस और न्यायालय का चक्कर लगाते रहते हैं।
निश्चय ही उन सारी कंपनियों को इससे सबक लेना चाहिए। हालांकि आम्रपाली समूह मामले में निवेशकों का पूरा धन मिल जाएगा इसमें संदेह है। कारण, समूह पर बैंकों और प्राधिकरण का भी बकाया है। अगर बेची गई संपत्तियों से पहले इनने अपना बकाया वसूलने की कोशिश की तो इतनी राशि नहीं बचेगी कि सभी को उनकी राशि मिले। समूह से जहां अपराध हुआ है, उसकी सजा उनको मिले, लेकिन अच्छा होता यदि कोर्ट अपने प्रतिनिधि की देखरेख में आम्रपाली को तय समय में परियोजनाएं पूरी करने का आदेश देता।
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