राफेल पर सफाई

Last Updated 15 Nov 2018 04:03:34 AM IST

राफेल के सीईओ एरिक ट्रैपिएर ने जितने विस्तार से सारे आरोपों का जवाब दिया है, उससे बहुत सारी बातें फिर से साफ हुई हैं।




राफेल पर सफाई

 हालांकि इससे राफेल विवाद पर राजनीति बंद नहीं होगी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्रैपिएर के बयान के बाद जैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की वह इस बात का प्रमाण है कि चुनाव तक वे अपने रु ख पर पुनर्विचार करने को तैयार नहीं हैं।

कांग्रेस की रणनीति बिल्कुल साफ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भ्रष्टाचारी साबित करना। राफेल खरीद का निर्णय प्रधानमंत्री के स्तर पर हुआ। इसलिए राफेल मामले पर उनको कठघरे में खड़ा करना आसान है। वैसे, मामला सुप्रीम कोर्ट के पास भी है। न्यायालय को पहले खरीद प्रक्रिया की जानकारी दी गई।

बाद में उसने कीमत मांगी तो बंद लिफाफे में उसे यह मुहैया करा दी गई। तो   सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों एवं अगर उसने कोई फैसला दिया तो उस पर भी मामले की राजनीतिक परिणति निर्भर करेगा। किंतु ट्रैपिएर ने जो कहा है, वे तथ्य हैं। मसलन, अभी तक राहुल गांधी का आरोप है कि प्रधानमंत्री ने राफेल सौदे से 30 हजार करोड़ रु पये अनिल अंबानी की जेब में डाल दिया। ट्रैपिएर कह रहे हैं कि रिलायंस के साथ हमने संयुक्त उद्यम किया है, और तीस कंपनियों के साथ करार किया है। यह एक तथ्य है जिसे कांग्रेस और विपक्ष नजरअंदाज करते हैं।

दूसरे, संयुक्त उद्यम में दस्सॉल्ट ने अभी तक केवल 40 करोड़ का निवेश किया है। यह 51 प्रतिशत और 49 प्रतिशत की साझेदारी है। हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे यहां वोट की प्रतिस्पर्धा में राजनीति सारी सीमाएं और मर्यादाएं पार गई हैं। रक्षा मामलों पर इस तरह का विवाद होना ही नहीं चाहिए था। अगर किसी मामले में भ्रष्टाचार है, तो उसे अवश्य उठाया जाए। उसके तथ्यों को लेकर बिल्कुल आस्त हो जाएं तभी ऐसे मामलों को उठाया जाए। गहराई से राफेल सौदे को देखें साफ दिखाई देगा कि उसके साथ बिल्कुल ऐसा नहीं किया गया।

कहां 40 करोड़ और कहां 30 हजार करोड़। हमारे यहां यह भी संभव नहीं कि एक बार अगर गलत तथ्यों से आरोप लगा दिया गया तो सही तथ्य सामने आने के बाद उसे स्वीकार कर लिया जाए। इसलिए राफेल राजनीतिक मुद्दा बना रहेगा। किंतु हमारा मानना है कि देश के आम लोगों को इस विवाद से परे उठकर राफेल सौदे के बारे में विचार करना चाहिए। वायुसेना प्रमुख तक दो बार बयान दे चुके हैं कि हमें अच्छा सौदा मिला है, तो उस पर प्रश्न उठाने का मतलब उनकी ईमानदारी व समझ को भी अस्वीकार करना है।



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