ड्रैगन का उकसावा
मालदीव में जारी राजनीतिक संकट के बीच चीन के एक समाचार पोर्टल ने पूर्वी हिन्द महासागर में चीनी युद्धपोतों की खबर के जरिये इस पूरे क्षेत्र में सनसनी पैदा कर दी है.
ड्रैगन का उकसावा |
अगर इस खबर में आंशिक तौर पर भी सच्चाई है, तो यह भारतीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा का सबब हो सकती है.
हालांकि भारत सरकार ने इस खबर का खंडन करते हुए साफ तौर पर कहा है कि मालदीव के निकट कोई चीनी युद्धपोत नहीं है.
उधर एक ऑस्ट्रेलियाई न्यूज वेबसाइट ने भी हिन्द महासागर में चीनी युद्धपोतों की तैनाती का हवाला देते हुए कहा है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया को मालदीव से दूर रखना इसका मकसद है.
चीनी युद्धपोतों की तैनाती की खबर में सच्चाई हो या न हो लेकिन इस बात में पूरी सच्चाई है कि चीन मालदीव में जरूरत से ज्यादा सक्रिय है और इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है. मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन चीन समर्थक माने जाते हैं और उनकी सरकार ने चीन को तमाम तरह की रियायतें दे रखी हैं.
यह भी अकारण नहीं है कि कोलंबो में निर्वासित जीवन बिता रहे पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने जब मालदीव में राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए भारत से हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था, तब चीन ने मालदीव में बाहरी शक्तियों को हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी थी. जाहिर है कि उसका इशारा भारत की ओर था. ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन चीन के इशारे पर ही भारत को मुंह चिढ़ाने वाली कार्रवाई कर रहे हैं.
आपातकाल की अवधि को एक माह के लिए बढ़ाने की कार्रवाई को इससे अलग करके नहीं देखा जा सकता. उन्होंने भारतीय अपेक्षाओं को दरकिनार करते हुए ही आपातकाल की अवधि बढ़ाने का फैसला किया है. यकीनन यह भारत को उकसाने वाली कार्रवाई है और इससे दोनों देशों के बीच टकराव बढ़ सकते हैं. नई दिल्ली को उम्मीद थी कि मालदीव की सरकार आपातकाल को आगे नहीं बढ़ाएगी.
गौरतलब है कि पिछली 5 फरवरी को 15 दिनों के लिए आपातकाल थोपा गया था. हालांकि पूरे मसले पर भारत संयम बरत कर आगे बढ़ रहा है, और मालदीव में लोकतंत्र और कानून के शासन की वापसी के अपने पुराने रुख को ही दोहरा रहा है. मालदीव की ओर से भारत को उकसाने वाली कोई भी कार्रवाई उसके लिए महंगी साबित हो सकती है.
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