फिर बरपा आतंक
सुंजवान सैन्य शिविर पर हमला करने वाले आतंकवादियों का मरना निश्चित था. पैरा कमांडो और गरुड़ कमांडो ने जिस ढंग से आत्मघाती दस्ते का मुकाबला किया उसकी पूरी प्रशंसा की जानी चाहिए.
फिर बरपा आतंक |
आतंकियों के निशाने पर आवासीय परिसर एवं आयुध भंडार थे. यह सैन्य ऑपरेशन की सफलता मानी जाएगी कि आतंकवादी इसमें से किसी में सफल नहीं हुए. आवासीय परिसरों से लोगों को बाहर निकाल लिया गया और आयुध भंडार सुरक्षित बच गया.
किंतु यह हमला जम्मू-कश्मीर के सैन्य स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़ा करती है. इतने सुरक्षित सैन्य ब्रिगेड का सुरक्षा घेरा तोड़कर घुस जाना कोई सामान्य बात नहीं है. आखिर वे किस तरह चाहरदीवारी के नीचे सेंध बनाकर घुसने में कामयाब हो गए? सुबह के समय सैन्य वर्दी में हथियार लिये दौड़ते आतंकवादियों को सैर करने वाले ने टोका और वे गोलीबारी करने लगे.
आतंकवादियों का अंत करने और शिविर को सुरक्षित घोषित करने में जितना समय लग रहा है, उससे अंदाजा लग जाता है कि उन्होंने कितना सोच-समझकर षड्यंत्र रचा था. इस हमले से जम्मू कश्मीर के लोगों के अंदर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अगर सैन्य अड्डे सुरक्षित नहीं हैं तो फिर हमारी सुरक्षा कौन करेगा? वास्तव में इस हमले ने राज्य के साथ देश के सभी ऐसे सैन्य शिविरों की सुरक्षा की नये सिरे से मूल्यांकन कर उसमें आवश्यक सुधार करना अपरिहार्य कर दिया है.
इसके कुछ ही दिनों पहले आतंकवादियों ने अस्पताल परिसर के बाहर हमला करके जेल से स्वास्थ्य जांच के लिए लाए गए लश्कर-ए-तैयबा के एक खूंखार आतंकवादी को छुड़ा लिया. दोनों घटनाओं में सुरक्षा चूक साफ-साफ नजर आ रहा है. थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत भी जम्मू पहुंच गए हैं. जाहिर है, वे ऑपरेशन के साथ सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा भी कर रहे होंगे. ऐसे समय पूरे देश के एकजुट होने की आवश्यकता होती है.
जम्मू-कश्मीर विधान सभा में कुछ सदस्यों ने पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाकर यही दिखाने का प्रयास किया था. लेकिन विधान सभा के अंदर नेशनल कांफ्रेंस के एक वरिष्ठ विधायक ने जिस तरह पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाया और बाद में भी अपने बयान पर कायम रहा, वह सन्न करने वाला है. आश्चर्य है कि न तो पार्टी ने उस विधायक को पार्टी से निकाला, न कोई कार्रवाई ही हुई. कायदे से उसकी गिरफ्तारी हो जानी चाहिए थी ताकि दूसरे आस्तीन के सांपों को सबक मिलता.
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