हिमाचल में भी कमल

Last Updated 19 Dec 2017 05:57:18 AM IST

जैसे कयास लगाए जा रहे थे, बिल्कुल वैसा ही हुआ. हिमाचल प्रदेश में भी कमल खिला. लेकिन पार्टी की इस जीत में कई अहम चेहरों की हार ने सियासी पंडितों को तो चौंकाया ही साथ ही कई नेताओं को भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया.


हिमाचल में भी कमल

सबसे सनसनीखेज हार भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल और प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती की रही. ये दोनों दिग्गज अपनी हार नहीं टाल सके. ऐसे हैविवेट नेताओं की हार से पार्टी को झटका लगा है.

नतीजतन आलाकमान को नये सिरे से मुख्यमंत्री के लिए मगजमारी करनी होगी. चुनाव परिणाम का नजदीक से विश्लेषण करें तो यह बात साफ तौर पर उभरकर आती है कि राज्य की जनता ने स्थानीय विकास और स्थानीय चेहरों को प्राथमिकता दी. कहने का मतलब यह कि किस नेता ने स्थानीय स्तर पर विकास के कितने काम किए हैं और उसका विजन क्या है, इस पर जनता की पैनी नजर रही है.

साथ ही स्थानीय मुद्दों को जनता ने बाकी मसलों के साथ गड्मगड्ड नहीं होने दिया. शायद यही वजह है कि अलोकप्रिय सरकार चलाने के बावजूद व्यक्तिगत तौर पर विकास की बात करने वाले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, उनके बेटे या कांग्रेस के कई बड़े नेता चुनाव जीत गए. जबकि इसके उलट धूमल और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष परिणाम अपने अनुरूप नहीं ला सके.

यानी जनता ने कैंडिडेट का चेहरा देखकर मतदान किया. कह सकते हैं कि जनता ने बेहद जागरूक होकर अपने मत का इस्तेमाल किया. इस अवधारणा को इस बिंदु पर भी समझा जा सकता है कि जनता ने सरकार के खिलाफ न जाकर प्रत्याशियों का चेहरा और उसके कामों को आधार बनाकर वोटिंग की. इस हिसाब से ‘एंटी इन्कम्बेंसी’ फैक्टर यहां ज्यादा प्रभावी नहीं रहा.

यही कारण है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र भी जीत हासिल करते हैं और उनके बेटे भी. चूंकि, हिमाचल में पांच साल के लिए एक दल को जिताने का ट्रेंड रहा है, सो कांग्रेस के बाद भाजपा की वापसी हुई है. मगर धूमल के हारने से आलाकमान को किसी नये नेता पर दांव आजमाना होगा. साथ ही गुटबाजी से भी पार पाना होगा. कांग्रेस में भी शीर्ष स्तर पर बदलाव की उम्मीद है.



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