राहुल गांधी : ताजपोशी के बाद

Last Updated 18 Dec 2017 04:51:49 AM IST

राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में जो उत्साह प्रदर्शित किया गया है, वह कितना वास्तविक है और कितना कृत्रिम कहना कठिन है.


राहुल गांधी की ताजपोशी.

हालांकि सोनिया गांधी के बाद उनका अध्यक्ष बनना निश्चित था. जब पार्टी की एकता के लिए एक वंश का नेतृत्व अपरिहार्य माना जाने लगा हो तो फिर दूसरे किसी के अध्यक्ष बनने का सवाल कहां पैदा होता है! राहुल ने अध्यक्ष पद ऐसे समय संभाला है जब पार्टी के सामने सबसे ज्यादा चुनौतियां हैं. आजादी के बाद से वह सबसे बुरे चुनावी प्रदर्शन के दौर से गुजर रही है.

राहुल गांधी के कंधे पर पार्टी को इस बुरे दौर से उबारने की जिम्मेवारी है. इस सवाल का जवाब भविष्य के गर्त में है. उन्होंने अध्यक्ष पद संभालते हुए जो भाषण दिया उसमें पार्टी के सामने के संकट और समस्याओं का जिक्र नहीं था. उसमें केवल भाजपा और वर्तमान केंद्र सरकार की आलोचना थी. पार्टी के बारे में उन्होंने दो बातें बोलीं.

एक-ग्रांड ओल्ड पार्टी को ग्रांड ओल्ड यंग पार्टी में परिणत करना है. और दूसरी-मैं कार्यकर्ताओं की आवाज बनूंगा. इनसे यह समझना मुश्किल है कि उनके दिमाग में पार्टी के भविष्य को लेकर कोई रूपरेखा है या नहीं.

विपक्ष में होने के नाते सरकार की आलोचना करने में कोई समस्या नहीं है. आपके भाजपा से वैचारिक मतभेद हैं यह भी सही है. किंतु इस समय कांग्रेस को सबसे पहले अपने अंदर झांकने की जरूरत है. यह समझने की आवश्यकता है कि उसकी ऐसी दुर्दशा क्यों हुई है? क्यों वह लोकसभा चुनाव में 44 सीटों तक सिमटी एवं ज्यादातर राज्यों में चुनाव हार रही है? राहुल गांधी जब तक इसका वस्तुपरक उत्तर तालश कर उन कारणों को दूर करने के लिए कमर नहीं कसेंगे, केवल सरकार की आलोचना से कुछ नहीं होने वाला.

पार्टी के अंदर भविष्य को लेकर निराशा का भाव है और उसके समर्थक भी यह मानने लगे हैं कि मोदी और शाह की जोड़ी से यह मुकाबला नहीं कर पाएगी. इस भावना को जब तक दूर नहीं किया जाएगा कांग्रेस का दिन नहीं पलट सकता. इसको दूर करने के लिए कांग्रेस को अपनी विचारधारा में स्पष्टता लानी होगी, संगठन में नई जान फूंकनी होगी और जनता के मुद्दों पर जमीनी संघर्ष करते हुए अपना जन समर्थन बढ़ाना होगा.

ये सारे काम कठिन हैं, पर इनके अलावा कोई चारा भी नहीं है. इसके लिए राहुल को ऐसी टीम बनानी होगी, जो वाकई पार्टी की इन आवश्यकताओं को समझकर उस पर काम करे. देखना होगा राहुल ऐसा कर पाते हैं या नहीं.



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