मौद्रिक नीति
रिजर्व बैंक द्वारा इस साल की आखिरी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में ब्याज दरों को पहले के ही समान रखने यानी रेपो दर को 6 प्रतिशत और रिवर्स रेपो रेट को 5.75 प्रतिशत बनाए रखने का फैसला उचित है या अनुचित इस पर एक राय बनाना मुश्किल है.
मौद्रिक नीति |
जो लोग आवास या अन्य आवश्यक कर्ज पर ब्याज दर घटने की उम्मीद कर रहे थे, वे इसे उचित नहीं मानेंगे.
इसी तरह, भारतीय उद्योग परिसंघ का कहना है कि हमें उम्मीद है कि आगे चलकर रिजर्व बैंक अपने तटस्थ रु ख को नरम करते हुए ब्याज दरों में कटौती करेगा जिससे घरेलू मांग बढ़ेगी. इससे व्यापक आधार पर निवेश गतिविधियां बढ़ेंगी, जो अभी तक इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ पाई हैं.
संभवत: सरकार भी विकास को गति देने के लिए ब्याज दरों में कुछ कटौती की उम्मीद कर रही थी. इससे पहले अक्टूबर में हुई बैठक में भी रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया था. एमपीसी के सभी छह सदस्यों में से सिर्फ एक ने इस फैसले का विरोध किया. ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक ने महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए ऐसा करने का फैसला किया है.
बैंक के गवर्नर डॉ. उर्जित पटेल ने कहा भी कि आने वाले दिनों में महंगाई दर बढ़ने के आसार है. वास्तव में अक्टूबर, 2017 में थोक और खुदरा महंगाई की दर के बढ़ने के बाद से ही उम्मीद थी कि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करेगा. पहले महंगाई की दर 4.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था जिसे बढ़ा कर 4.7 प्रतिशत कर दिया गया है.
दरअसल, महंगाई कम करने के लिए रिजर्व बैंक ब्याज दरों का सहारा लेता है. ब्याज दर घटाने से लोग ज्यादा कर्ज लेते हैं और इससे बाजार में मांग बढ़ती है जिसका असर महंगाई पर पड़ता है.
जब महंगाई बढ़ने की संभावना होती है तो रिजर्व बैंक ब्याज दरों को या तो बढ़ाता है या फिर उन्हें उसी स्तर पर बनाये रखता है. रिजर्व बैंक ने इसे बढ़ाया नहीं है. इस तरह हमें रेपो या रिवर्स रेपो को अपरिवर्तित रखने को तात्कालिक परिस्थितियों में एक विवेकशील फैसला मानना होगा. वैसे इस समीक्षा में महंगाई ही चिंता का एक कारण नहीं बताया गया है.
इसके साथ वैश्विक स्तर पर जारी अस्थिरता और सरकार की राजकोषीय स्थिति को लेकर भी चिंता जताई है. इसका असर भारत की समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और कोई परिवर्तन करने से पहले इसके पूरे प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना ही उचित रास्ता है.
Tweet |