मनीला का संदेश

Last Updated 16 Nov 2017 05:03:34 AM IST

फिलीपींस की राजधानी मनीला में आसियान भारत शिखर सम्मेलन, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के नेताओं की बैठक तथा अन्य नेताओं के बीच द्विपक्षीय वार्ताओं का कोई एक निष्कर्ष निकालना कठिन होगा.


मनीला का संदेश

किंतु चार बातों पर लगभग एक राय होना विश्व के भविष्य के प्रति आस्त करता है. एक, आतंकवाद पर सभी देशों ने यह स्वीकार किया कि इससे मिलकर संघर्ष करना जरूरी है.

दूसरे, नियम आधारित सुरक्षा व्यवस्था ढांचे पर भी सबकी सहमति थी. तीन, जलवायु बचाने के लिए हुए समझौते का पालन हो और चौथा, मुक्त व्यापार को आगे बढ़ाया जाए. सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अन्य सम्मेलनों की भांति आतंकवाद को पुरजोर ढंग से उठाया. फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते ने उदाहरण देते हुए यह समझाया कि आतंकवाद का खतरा क्षेत्र में मंडरा रहा है.

नियम आधारित सुरक्षा व्यवस्था ढांचे की बात भी प्रधानमंत्री मोदी ने ही की. कहने की आवश्यकता नहीं कि उनका इशारा चीन की ओर था. हालांकि उन्होंने चीन का नाम नहीं लिया, लेकिन चीन जिस तरह दक्षिण चीन सागर में जबरदस्ती कर सुरक्षा ढांचे को एकपक्षीय तरीके से खड़ा करने की ओर बढ़ रहा है, उसके आलोक में ही ये बातें कही गई थीं. वैसे चीन ने थोड़ी बुद्धिमता दिखाते हुए, आसियान सम्मेलन से पूर्व उन देशों के साथ क्षेत्रीय आचार संहिता बनाने के लिए बातचीत पर सहमति बना लिया.

बावजूद इसके अभी किसी को उम्मीद नहीं है कि चीन वहां से अपना दावा छोड़ेगा एवं जो सैन्य ढांचा उसने खड़ा कर लिया है, उसमें कोई कमी करेगा. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी की बात को पूरा समर्थन मिला.

अब इसका क्रियान्वयन किस तरह से होता है यह देखना होगा. जिस तरह से दुनिया भर में संरक्षणवाद का दौर चला है, उसमें सभी देश यदि मुक्त व्यापार पर जोड़ देते हैं तो इसका अर्थ यही लगाया जाएगा कि इन सबने संरक्षणवाद के खतरों को समझा है. इस प्रकार आसियान सम्मेलन विश्व के लिए और क्षेत्र के लिए अच्छा संदेश लेकर समाप्त हुआ है.

भारतीय कूटनीति वहां जिस तेजी से सक्रिय रही उससे ऐसा लगा कि पहले से इसकी काफी तैयारी की गई थी. अमेरिका के राष्ट्रपति, जापान के प्रधानमंत्री, चीन के प्रधानमंत्री, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री, ब्रुनेई के सुल्तान आदि से हमारे प्रधानमंत्री मोदी की द्विपक्षीय मुलाकात काफी सार्थक रही और व्यापारिक, रक्षा तथा सांस्कृतिक संबंधों के विकसित होने का रास्ता फिर से प्रशस्त हुआ.



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