पर्यावरण की खातिर
सियासतदानों की ‘मेरी कमीज तेरी कमीज से उजली’ के बीच केंद्र सरकार का तय वक्त से दो साल पहले बीएस-6 ईधन (पेट्रोल-डीजल) की ब्रिकी का फैसला वाकई राहत देने वाला और सराहनीय है.
पर्यावरण की खातिर |
जब दिल्ली और उसके आसपास के इलाके प्रदूषण की मार से त्राहिमाम करने लगे तो दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मुलाकात कर प्रदूषण से लड़ने के बारे में विचार-विमर्श करने का दिखावा किया.
यह मुलाकात फिर भी बेहतर पहल हो सकती थी मगर हरियाणा के मुख्यमंत्री का यह कहना कि दिल्ली पराली जलाने की बात उठाने से पहले अपने यहां यमुना नदी में व्याप्त प्रदूषण को देखें. क्या इस आरोप-प्रत्यारोप से हम प्रदूषण को मिटा पाएंगे?
कम-से-कम फिलवक्त के भयावह हालात को देखते हुए समझदारी भरी बातें और सुझाव की उम्मीद इन जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से की जानी चाहिए. इसके उलट अगर सतही बातों में समय बर्बाद किया जाएगा तो समस्या बढ़ती चली जाएगी. निश्चित तौर पर बीएस-6 ईधन की जरूरत देश को है. इससे कार्बन के अलावा सल्फर, नाइट्रोजन और पीएम 2.5 के उत्सर्जन में भारी कमी आएगी.
साथ ही लोगों के स्वास्थ्य पर बाकी ईधन के मुकाबले करीब 30 फीसद कम नुकसानदेह होगा. इससे पहले ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध, गाड़ियों की संख्या कम करने का सुझाव, ऑड-ईवन लागू करने के अलावा पराली जलाने पर रोक लगाने की बात भी जोरदार तरीके से अमल में लाने की बात कही गई.
दरअसल, जिस खतरनाक फिजां में दिल्ली-एनसीआर के लोग सांस ले रहे हैं, वैसी स्थिति में ऐसे ईमानदार और समझदार फैसले ही माहौल को रहने लायक बना सकते हैं. सरकार के ऐसे कदम से यह उम्मीद बलवती हुई है कि एक-न-एक दिन प्रदूषण के कहर को कम किया जा सकेगा. साथ-साथ वो सारे प्रयास भी दिन-रात करने होंगे, जिससे पर्यावरण को शुद्ध और परिष्कृत करने में मदद मिल सके. दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्यों में सांस लेना जिंदगी को पल-पल मारने जैसा है.
सो हमें बिना एक क्षण गंवाए वो सारी कोशिशों को धार देनी होगी, जिससे हर कोई तरोताजा दिखे. लेकिन इन सब पहल के अलावा पर्यावरण से जुड़ी कई सारी एजेंसी को खत्म कर एक या दो एजेंसी तक को ही ऐसे मामलों को देखने और जरूरत के मुताबिक निर्णय लेने का अधिकार भी मिले. किंतु इससे भी जरूरी बात; जब तक जनता के मन में पर्यावरण को लेकर जज्बा नहीं पैदा होगा तब तक प्रयास अधूरे ही रहेंगे.
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