विलय का दांव

Last Updated 23 Aug 2017 04:36:41 AM IST

तमिलनाडु में छह महीने बाद कायम होती दिख रही राजनीतिक स्थिरता में कसर रह गई है. अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जयललिता के असल उत्तराधिकारी की लड़ाई अब सत्ता के बंटवारे और वर्चस्व कायम रखने में सिमट गई है.


विलय का दांव

दो से एक हुए धड़े के बावजूद उसके टकराते रहने का खतरा टला नहीं है.

सीमेंटिंग फोर्स भाजपा या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से एक हुए अम्मा के विश्वसनीय उत्तराधिकारी ओ पन्नीरसेल्वम और चिनम्मा शशिकला के तिकड़म से मुख्यमंत्री पद पर बैठाये गए पलानीसामी के बीच खाई पाट दी गई थी.

पन्नीरसेल्वम को उपमुख्यमंत्री के साथ वित्त विभाग देने के साथ यह समझौता हो गया था. लेकिन इससे भी अहम पलानीसामी का चिनम्मा और उनके वारिस दिनाकरण को अन्नाद्रमुक से निकालने की पन्नीर की बात पर सहमत होना था.

इसका खुलासा होते ही दिनाकरण समर्थक 19 विधायक बागी हो गए हैं. इससे पलानीसामी सरकार अल्पमत में आ गई है. 234 सदस्यीय विधानसभा में 134 अन्नाद्रमुक के विधायक हैं. पर उसके बहुमत के लिए 118 सदस्य चाहिए जो 19 विधायकों के समर्थन न देने से पूरा नहीं होता है. यह स्थिति विपक्षी करुणानिधि-स्टालिन के द्रमुक के लिए अवसर है, जिसने बोम्मई मामले का हवाला देते हुए राज्यपाल से सदन बुलाने और सरकार के विश्वास मत हासिल करने का दबाव बना दिया है.

हालांकि द्रमुक के भाग से छींका टूटता नहीं लगता. इसलिए कि अगर समवेत अन्नाद्रमुक ने व्हिप जारी कर दिया और विद्रोही विधायकों ने वोट नहीं डाले तो उनकी सदस्यता जाने का खतरा हो जाएगा.

इसलिए भाजपा का संसद में अन्नाद्रमुक के कुल 48 सांसदों के सहयोग से विधेयक पारित कराने से लेकर आम चुनाव या इसके पहले दक्षिण में पैर जमाने तक में फायदा उठाने का उसका मंसूबा विफल नहीं होगा.

दरअसल, विखंडित अन्नाद्रमुक भाजपा के मुफीद नहीं होता. उसके संगठित होने पर ही वह उसका ज्यादा फायदा उठा सकती थी. तब लड़ाई तिकोनी होगी, जिसमें वह अन्नाद्रमुक के सहारे बड़े दक्षिणी राज्य में दाखिल हो सकती है. द्रुमक और कांग्रेस पहले से पस्त है ही.

इसी आधार पर अन्नाद्रमुक को राजग में लाकर मोदी कैबिनेट में जगह दी जा रही है. हालांकि आम चुनाव दूर है. फिलहाल अन्नाद्रमुक को अक्टूबर में विास मत पाना होगा.



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