डराता सर्वेक्षण-दो
हालिया प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 खंड-दो अर्थव्यवस्था से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण सचों का सामना कराता है.
आर्थिक सर्वेक्षण |
यह बताता है कि अर्थव्यवस्था में विकास की रफ्तार उस गति से नहीं होनी है, जिस गति का अंदाज पहले लगाया गया था. पहले अनुमान था कि अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.75 से 7.5 प्रतिशत रहेगी. पर अब सर्वेक्षण खंड दो की प्रस्तुति और इसके बाद इसके लेखक मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रहण्यम के साक्षात्कार से साफ होता है कि अर्थव्यवस्था का इस दर से विकसित हो पाना भी आसान नहीं है. इसकी तमाम वजहें हैं.
सर्वेक्षण साफ करता है कि किसानों की कर्जमाफी का एक असर यह हुआ कि तमाम राज्य सरकारों ने कई परियोजनाएं के बजट में कटौती कर दी हैं. सारे राज्यों की कर्जमाफी का असर यह होगा कि अर्थव्यवस्था के विकास की रफ्तार में दशमलव सात की कमी आ जायेगी. कर्ज माफी के लिए जो रकम आयेगी, वह परियोजनाएं काटकर आएगी, यह अपने आप में बहुत ही चिंताजनक तथ्य है. पर कर्जमाफी का फौरी विकल्प कोई और है नहीं, राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के चलते किसानों की कर्जमाफी अधिकांश राज्य सरकारों के लिए एक अनिवार्य कदम बन गया है.
सर्वेक्षण के मुताबिक नोटबंदी के चलते 10,587 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय की घोषणा हुई. इससे यह साफ होता है कि शुरू में अनुमान लगाये गये थे कि भारी तादाद में काली आय बाहर आ जायेगी. कम से कम ऐसी आय की घोषणा के स्तर पर नोटबंदी अब कामयाब नहीं दिखायी पड़ रही है. सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा यह है कि सरकार को सोचना चाहिए कि विकास की दर तेज कैसे हो, क्योंकि सुस्त अर्थव्यवस्था से रोजगारों का सृजन तेज नहीं हो सकता.
कई मामलों में तो यह भी देखने में आता है कि तेज विकास के बावजूद रोजगार के अवसरों में तेज बढ़ोत्तरी नहीं होती. ऐसे में अर्थव्यवस्था में सुस्ती तो रोजगार के लिए नकारात्मक ही होगी.
रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के हवाले से बताया गया है कि हाल में मैन्युफेक्चरिंग क्षेत्र की कंपनियों के आंकड़े सकारात्मक तस्वीर पेश नहीं करते. गौरतलब है कि मैन्युफेक्चरिंग क्षेत्र से पीएम मोदी के मेक इन इंडिया की सफलता के सपने जुड़े हैं. मोदी सरकार को इस सर्वेक्षण की दिखायी गयी तस्वीर को सामने रखकर ठोस सुधार शुरू कर देने चाहिए.
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