भारत छोड़ो का संकल्प
भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वषर्गांठ पर लोक सभा ने सर्वसम्मति से देशवासियों को साथ लेकर 2022 तक महात्मा गांधी और सभी स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन का जो संकल्प व्यक्त किया, उसका स्वागत किया जाना चाहिए.
भारत छोड़ो का संकल्प |
ऐसे दिवसों की प्रासंगिकता अपने अंदर झांकने और प्रेरणा लेकर देश के लिए बेहतर करने का संकल्प लेने में ही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जनता और जन प्रतिनिधियों से आपसी मतभेद भुलाकार देश से गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता खत्म करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प के साथ आगे बढ़ते हुए वर्ष 2022 तक एक नये भारत के निर्माण का जो आह्वान किया, वह इसी भाव के अनुरूप हैं. उनका यह कहना कि ‘करो या मरो’ की जगह ‘करेंगे और कर के रहेंगे’ हमारे अंदर ऐसा होने का आत्मविश्वास करता है.
प्रधानमंत्री आजादी की 75 वीं वषर्गांठ यानी 2022 तक नये भारत की बात पहले से करते रहे हैं. किंतु केवल संकल्प लेने भर से यह लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाएगा. इसके लिए अहर्निश काम करने की जरूरत है.
उन्होंने जिस एक बात पर चिंता व्यक्त की वह है, समाज में बढ़ती हिंसा और कानून का पालन न करने की बढ़ती प्रवृत्ति. अगर ये प्रवृत्तियां नहीं रुकीं तो फिर नये भारत का सपना ध्वस्त हो जाएगा. विपक्ष की ओर से सोनिया गांधी के भाषण का स्वर हालांकि प्रधानमंत्री के भाषण से अलग था, लेकिन उन्होंने कई चिंताओं की ओर इशारा किया.
मसलन, उन्होंने प्रश्न उठाया कि क्या अंधकार की शक्तियां हमारे बीच फिर तेजी से नहीं उभर रहीं? क्या जहां आजादी का माहौल था वहां भय नहीं फैल रहा? कहा जा सकता है कि ऐसे दिन कम-से-कम राजनीति से अपने को दूर रखना चाहिए था. किंतु यदि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी की अध्यक्ष को ऐसा लगता है तो इस पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए.
वास्तव में भारत छोड़ो आंदोलन केवल अंग्रेजों को भगाने के लिए किया गया आंदोलन नहीं था. यह भारत से अंग्रेजीयत की समाप्ति का आंदोलन था. आज जिन बुराइयों की चर्चा प्रधानमंत्री एवं सोनिया गांधी ने की उसका अर्थ यह है कि भारत छोड़ो आंदोलन का लक्ष्य हमने प्राप्त नहीं किया है. जाहिर है, इस दिवस को याद करके नये संकल्प के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है.
Tweet |