अतिरेक के परिणाम

Last Updated 12 Aug 2017 06:08:05 AM IST

देश के बड़े बिल्डर जेपी इंफाट्रेक दिवालिया होने की राह पर निकल चुका है, इस खबर ने कइयों की नींद उड़ा दी है. इनमें वे हजारों निवेशक शामिल हैं, जिन्होंने घर की उम्मीद में अपनी रकम जेपी के हवाले की थी.


फाइल फोटो

जेपी ही नहीं आम्रपाली, यूनिटेक समेत कई बिल्डर वित्तीय समस्याओं से जूझ रहे हैं. इनमें से कुछ समस्याओं के जिम्मेदार तो ये बिल्डर खुद हैं. परियोजनाओं का अतिरेक इन बिल्डरों को ले डूबा. इन बिल्डरों ने बैंकों से जमकर कर्ज लिया, परियोजनाओं की लागत बढ़ती गई, बैंक पहले ही डूबत कर्जों से परेशान हैं तो वे अब इन बिल्डरों के प्रति ज्यादा सख्त हो गए हैं.

क्षमता से ज्यादा बड़ी परियोजनाओं में हाथ डालने के अलावा, इन बिल्डरों ने कई ऐसे कामों में पैसा डाला, जो लाभप्रद नहीं थे. आम्रपाली के प्रमोटर फिल्म के धंधे में चले गए. जेपी इंफाट्रेक के प्रमोटर फॉर्मूला वन कार रेस के लिए विख्यात हुए. यानी अपने मूल काम के अलावा और तमाम कामों में पैसे लगाए इन प्रमोटरों ने. इस प्रवृत्ति का नुकसान भी हुआ इन बिल्डरों को. पर अब समस्या बहुआयामी हो गई है.

निवेशक परेशान हैं कि अब उनकी रकम का क्या होगा? फ्लैट के लिए बड़ी रकम निवेशकों से वसूली जा चुकी है. फ्लैट नहीं मिले उन्हें, अब दिवालिया होने की लंबी कानूनी प्रकिया में निवेशकों को क्या मिल पाएगा, इसकी चिंता निवेशकों को है. अब जो कुछ बिल्डरों पर बचा-खुचा है उस पर बैंकों की निगाहें हैं.



सरकारी एजेंसियों को अपने बकाया की वसूली करनी है. सबकी वसूली के बाद क्या बचेगा आम निवेशक के लिए ,यह विचारणीय सवाल है. आम निवेशक की इसमें सिर्फ  यह गलती है कि उसने बिल्डरों पर  भरोसा किया. उन बिल्डरों पर जिन्हें अपनी क्षमताओं का पूरा अंदाज न था और तमाम दूसरे कामों में पैसा उड़ा दिया. बिल्डरों के इस संकट से भविष्य के लिए कुछ सबक लिए जाने चाहिए.

एक सबक तो यह कि कुछ सीमा तय हो कि कोई बिल्डर कितनी परियोजनाओं को हाथ में ले. सीमित संसाधनों के बावजूद बहुत परियोजनाओं को हाथ में लेने के दुष्परिणाम सामने ही हैं. फ्लैट चाहने वाले निवेशकों को एक लंबी कानूनी प्रक्रिया का सामना करने को तैयार रहना चाहिए. और इस आशंका के सच में बदलता देखने के लिए भी तैयार होना चाहिए कि उन्हें न फ्लैट मिले और न बतौर मुआवजा पर्याप्त राशि मिले.

बैंकों को सबक सीखना चाहिए कि ब्याज कमाने के लालच में अपात्र को कर्ज देने के परिणाम वे ही होते हैं, जो अभी दिख रहे हैं. कुल मिलाकर इस संकट से सबक सीखे जाने जरूरी हैं.

 

 

संपादकीय


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