सराहनीय निर्णय
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का शहीदों के नाम पर संस्थाओं के नाम रखने का फैसला बेहद प्रशंसनीय है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ |
आमतौर पर सरकारें शहीदों के परिवार से मातम-पुर्सी और सांत्वना जताने और नौकरी व कुछ आर्थिक मदद का ऐलान करके यह दिखाने की भरसक कोशिश करती है कि उनके सिर पर सरकार का हाथ है.
मगर वास्तविकता इससे कोसों दूर है. आर्थिक सहायता और नौकरी देने की घोषणा कभी-कभार तो स्वांग बनकर रह जाती है. सरकार की संवेदना का पैमाना भी शायद ऐसी घोषणाओं से लबालब रहता है. तभी तो योगी सरकार ने शहीद परिवार के साथ अपनी सरकार के सरोकार और सोच को आगे रखा. और यह निर्णय लिया कि प्रदेश की विभिन्न संस्थाओं के नाम शहीदों के नाम पर रखे जाएंगे.
यह फैसला इस मायने में बेहद अहम है कि हमेशा से शहीद परिवारों की सरकार से शिकायत रही है कि वह उनलोगों के बारे में तनिक भी चिंतित नहीं रहती है, जिसने देश के नाम पर खुद को कुर्बान कर दिया. और यह शिकायत या दर्द गलत भी नहीं है. अगर उत्तर प्रदेश को ही लें तो हाल के कुछ महीनों में राज्य के कई जवान मातृभूमि के लिए न्योछावर हुए. और जब शहीदों के प्रति सम्मान और उनके परिवारों के प्रति संवेदना और शोक प्रकट करने का वक्त आया तो सरकार की भारी संवेदनहीनता दिखाई दी.
चाहे शहीद बीएसएफ जवान के घर जाने से पहले एसी, भगवा कालीन, सोफा और महंगे बोतलबंद पानी की व्यवस्था हो या गोरखपुर में शहीद शुक्ला परिवार के यहां जाने का मसला. योगी सरकार का शहीदों के यहां जाने और शोक व्यक्त करने का शाही ठाठ कइयों को बेहद नागवार गुजरा. शायद शहीदों के नाम पर राज्य की संस्थाओं के नाम रखने के पीछे यह वजह भी रही हो.
और यह फैसला कहीं से भी गलत या सियासी नफा-नुकसान की दलीलों से परे है. अगर हम संस्थाओं के नाम शहीदों के नाम पर नहीं रखेंगे तो फिर किसके नाम पर रखेंगे? देश की जनता भी इस बात को जानती है कि केंद्र सरकार की ज्यादातर संस्थाएं और परियोजनाएं नेहरू-गांधी परिवार के नाम पर चल रही हैं. तो शहीदों को इज्जत बख्शने का योगी सरकार का फैसला गलत कहां है?
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