सीएजी का यह खुलासा किसके लिए

Last Updated 23 Jul 2017 06:39:08 AM IST

ऐसे समय जबकि डोकलाम में युद्ध का खतरा मंडरा रहा है, पाकिस्तान और चीन ने हाथ मिला लिये हों, सीएजी की इस रिपोर्ट ने देश को बेचैन कर दिया है कि हमारे पास 10 दिन लड़ने के लिए भी गोला-बारूद नहीं हैं. यह स्थिति संतोषजनक नहीं है.


सीएजी का यह खुलासा किसके लिए.

देश कितना असुरक्षित है, यह सोच कर ही आम आदमी में घबराहट हो रही है. निश्चित तौर पर सीएजी के खुलासे से दुश्मन खेमे में खुशी होगी और उसका मनोबल ऊंचा हुआ होगा. वहीं भारतीय खेमा निराश और हताश होगा. ऐसे में सवाल लाजिमी है कि क्या इतने संवेदनशील मुद्दे को सार्वजनिक डोमेन में लाया जाना चाहिए था? बहुत सम्भव है कि यह सवाल बीजेपी को सूट कर रहा हो और वह इसके जरिये विपक्षी कांग्रेस के आक्रमण को भोथरा बना रही हो. जो भी हो, लेकिन इस सवाल से बचना राष्ट्रहित नहीं हो सकता.

कितना अच्छा होता, अगर देश में सबसे अधिक समय तक हुकूमत करने वाली कांग्रेस खुद यह सवाल उठा रही होती कि सीएजी की संवेदनशील रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने की परंपरा को क्यों जारी रखा जाए? वैसे देश अकेले सत्ताधारी दल का ही नहीं है. लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश में विपक्ष की भूमिका कहीं से कमतर नहीं होती. लेकिन अफसोस कि ऐसे समय जबकि देश का हर नागरिक सीमा की सुरक्षा को लेकर चिंतित है, राजनीतिक नेता ऐसा बर्ताव कर रहे हैं, मानो उनके हाथ एक रिपोर्ट नहीं, कोई खजाना लग गया हो.

इसी सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि 2013 में गोला-बारूद की स्थिति तो और भी नाजुक थी. 2014 में मौजूदा एनडीए सरकार ने स्थिति को संभाला, गोला-बारूद व हथियारों की खरीद के निर्देश दिए. इसके बावजूद भंडार असलहे से खाली है. गन में इस्तेमाल होने वाले फ्यूज महज 17 फीसद ही मौजूद हैं, यानी 83 फीसद बेकार हैं. एनडीए सरकार ऐसे तथ्यों से विरोधी दलों और खासकर कांग्रेस का मुंह तो चुप करा सकती है, लेकिन देश की सरहद सुरक्षित है- इसका भरोसा आम लोगों को नहीं दिला सकती. यानी देश की सवा सौ करोड़ आबादी की सुरक्षा भगवान भरोसे है.

इतिहास भी बताता है कि जब-जब रक्षा बजट से खिलवाड़ किया गया, राज्य की सीमाएं मिट गई हैं. चक्रवर्ती राजा वही हुआ, जिसने रक्षा बजट की चिंता की. उपलब्ध लिखित इतिहास में मौर्यकाल का उदय रक्षा बजट को अहमियत देने का प्रतीक है, तो सम्राट अशोक के बाद रक्षा बजट से मुंह मोड़ने का खमियाजा राज्यों के विघटन का प्रमाण. मुगलों ने इस देश पर शासन किया, क्योंकि उन्होंने रक्षा बजट को स्थानीय राजाओं की तुलना में अधिक अहमियत दी. अंग्रेज भी इसलिए यहां अपने साम्राज्य को लम्बे समय तक रख पाए, क्योंकि उनके हथियारों के सामने स्थानीय राजा टिक नहीं सके.

 शांति की अहमियत है, लेकिन इसे वही समझता है जो शांति बनाने की क्षमता रखता है. युद्धपसंद, साम्राज्यवादी, विस्तारवादी देश क्या जानें, शांति की अहमियत क्या होती है! उनके लिए दुश्मन का समर्पण ही शांति का एकमात्र प्रमाण होता है. तात्पर्य यह है कि शांति तभी रह सकती है, जब शांति के रक्षकों के पास दुश्मन से बचने की सामथ्र्य हो, उन्हें ललकारने की ताकत हो. ऐसा रक्षा बजट की उपेक्षा करके कतई नहीं हो सकता.

सीएजी 160 साल पुरानी संस्था है, जिसे अंग्रेजों ने भारत पर नियंतण्ररखने के लिए बनाया था. ईस्ट इंडिया कंपनी के कामकाज पर पकड़ रखने के लिए यह ब्रिटिश संसद का तरीका था. उन दिनों ईस्ट इंडिया कंपनी की महत्त्वाकांक्षा को ब्रिटिश सरकार नियंत्रित करने में जुटी थी. आप सीएजी की संरचना, कार्य और अधिकारों पर नजर डालें, तो वह बस प्रस्तुति देने का काम करता है. यह प्रस्तुति ईस्ट इंडिया कंपनी के कामकाज के खिलाफ बेशक होती थी, लेकिन क्या मजाल कि ईस्ट इंडिया कंपनी उसके कामकाज में दखल दे दे. ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिटिश संसद को वास्तविक रिपोर्ट चाहिए होती थी. भले ही उस सीएजी की रिपोर्ट का फायदा भारतीय जनता को होता हो या नहीं होता हो, लेकिन ब्रिटिश सरकार द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी पर नकेल जरूर कसी जाती रही थी.



आजाद हिन्दुस्तान में वह परिप्रेक्ष्य बदल गया है. ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर रिपोर्ट भारतीय संसद में रखी जाती है, ठीक वैसे ही जैसे यह कभी ब्रिटिश संसद में पेश की जाती थी. पर इस रिपोर्ट से उंगली अब ईस्ट इंडिया कंपनी पर नहीं, खुद संसद में बहुमत वाली लोकतांत्रिक सरकार पर उठती है. यह महज तथ्यों के आईने में एक-दूसरे को राजनीतिक रूप से घेरने का अवसर देने का साधन मात्र बनकर रह गई है. मगर अब तो अतिसंवेदनशील मसलों पर इसके खुलासे से इसका खतरनाक और देशविरोधी चरित्र भी सामने आ गया है. इससे देश की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है. तथ्यों के आईने में राजनीति कतई गलत नहीं है. सीएजी की रिपोर्ट से वे बातें सार्वजनिक डोमेन में आती हैं, जिन्हें अक्सर सरकारें छिपाती हैं. यह लोकतंत्र के हित में है. मगर, यही सीएजी की रिपोर्ट अगर लोकतांत्रिक सरकार और देश पर खतरा बनकर दरपेश है तो इस पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विचारने की जरूरत है.

सीएजी की रिपोर्ट से अगर कोयला घोटाला सामने आता है, रेल में यात्रियों को परोसे जा रहे जानवरों जैसे भोजन की बात सामने आती है या विभिन्न सरकारों की लोक कल्याणकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार सामने आते हैं तो यह चिंताजनक होकर भी देश के हित में है. देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने वाली रिपोर्ट है यह. मगर हमारी सैन्य क्षमता कमजोर है, इसकी वास्तविक रिपोर्ट सामने आ जाए- यह तो अपना माथा खुद ईट से फोड़ने जैसा है. इस पर गोपनीयता की बंदिश तो होनी ही चाहिए. देश के लिए सोचने का समय है. किस तरह हम 40 दिन तक युद्ध में टिके रहने की क्षमता जल्द से जल्द पा सकते हैं? इस पर कितना खर्च आएगा? खर्च किस तरह जुटाया जाएगा? कहां से खरीदारी करनी है, कब करनी है, कितनी जल्दी करनी है? इन सवालों पर जल्द और त्वरित फैसला लेने की जरूरत है. कहीं ऐसा न हो कि दुश्मन हमारी स्थिति का फायदा उठा ले और हम लोकतंत्र बचाने की कोशिश में दूसरे देशों के हाथों अपने लोकतंत्र की हत्या करवा लें, खुद को गुलाम बना लें.

सीएजी की रिपोर्ट पर राजनीतिक हमले करने से ज्यादा जरूरी देश हित की चिंता करना है. यह बात विरोधी दलों ने अगर आगे आकर महसूस कर ली, महसूस करा दी तो यकीन मानिए कि राजनीतिक फायदा भी उन्हें अधिक होने वाला है. वहीं सत्ताधारी दल भी विरोधी दलों के विरोध पर उनके साथ देशद्रोही जैसा व्यवहार करने से बचने की सलाहियत रखें. उनका पूरा ध्यान देश की कमजोरी दूर करने पर होना चाहिए. सीएजी की रिपोर्ट की गोपनीयता की जरूरत पर मौका देखते ही देशव्यापी और उच्चस्तरीय मंत्रणा कर उचित निष्कर्ष पर यथाशीघ्र पहुंचने की जरूरत है.

 

 

उपेन्द्र राय
एडिटर इन चीफ तहलका


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