एमसीडी में कमल

Last Updated 27 Apr 2017 02:44:59 AM IST

दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणामों को आम आदमी पार्टी के नेताओं के लिए ‘आई ओपनर’ कहा जा सकता है.




एमसीडी में कमल

हालांकि, भाजपा की जीत सुनिश्चित थी, क्योंकि पिछले दो सालों में अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली और संवाद के तौर-तरीकों पर गौर किया जाए तो उनमें एक अधिनायकवादी की छवि दिखाई देने लगी थी.

इसलिए यह उम्मीद की जाने लगी थी कि आम आदमी पार्टी की उल्टी गिनती की शुरुआत होने लगी है. दरअसल, यह पार्टी आंदोलन की कोख से पैदा हुई थी, लिहाजा आमजन की अपेक्षाएं भी इससे ज्यादा थी. फिर इसके नेता अरविंद केजरीवाल ने देश की जनता को वैकल्पिक राजनीति का सपना दिखाया था.

यह भारतीय राजनीति में एक नया और अनोखा प्रयोग जैसा था. जाहिर है पारंपरिक राजनीति की कार्यशैली से आजिज नागरिकों और मतदाताओं ने रातों-रात अरविंद केजरीवाल को सिर आंखों पर बिठा लिया था. लेकिन प्रचंड बहुमत से दिल्ली की सत्ता संभालते ही उनकी अति महत्त्वाकांक्षा को पंख लगने शुरू हो गए.

ईमानदारी, पारदर्शिता, सुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के प्रति आम जनता को दी गई अपनी वचनबद्धता को भूलकर उन्होंने भारतीय रजनीति में एक नई तरह की नकारात्मक राजनीति की शुरुआत की.

पिछले दो सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना, उप राज्यपाल के साथ टकराव, केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करना पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित हुआ. इस नकरात्मक राजनीति ने उन्हें मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी का निर्वहन करने से अलग-थलग कर दिया. लेकिन सचाई तो यह है कि इस पराजय के बाद भी केजरीवाल और उनकी पार्टी आत्ममंथन करने के बजाय ईवीएम पर सवाल खड़े कर रही है, जो सबसे ज्यादा हास्यास्पद है.

दरअसल, अगर कोई यह सवाल करे कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव परिणाम किस राजनीतिक दल के लिए सबसे अधिक सबक लेकर आया है तो इसका सीधा जवाब है आम आदमी पार्टी. क्योंकि लोगों ने इस पार्टी से व्यवस्था परिवर्तन के सपने संजोये थे. पहली बार ऐसा लगा था कि राजनीति और आदर्शवाद साथ जुड़कर एक नई मिसाल पेश करेगी.

लेकिन केजरीवाल ने पूरी पार्टी को अपनी महत्त्वाकांक्षा और अहंकार की भेंट चढ़ा दी. ऐसे में अगर आत्मंथन किया जाएगा तभी पार्टी टूटने से बच सकती है, लेकिन नेतृत्व पर सवाल तो उठेंगे ही.



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