पर्यावरण की खातिर
प्रदूषण की विभीषिका को ध्यान में रखकर ही सुप्रीम कोर्ट ने ऑटोमोबाइल कंपनियों के खिलाफ बड़ा फैसला लिया है.
पर्यावरण की खातिर |
नि:संदेह भारत स्टेज-3 (बीएस-3) वाहनों की ब्रिकी और रजिस्ट्रेशन पर पूरी तरह से रोक लगाकर सर्वोच्च अदालत ने नई इबारत लिखी है.
हालांकि, इस तरह के कठोर निर्णय की अपेक्षा भले वाहन कंपनियों ने नहीं सोच रखी हो. मगर वक्त की मांग यही है. देश में हाल के वर्षो में पर्यावरण की जो क्षति हुई है, वह इसी ओर इशारा है कि अगर अब नहीं चेते तो न वर्तमान पीढ़ी स्वस्थ रहेगी और न देश का भविष्य सुखी रहेगा.
अप्रैल माह से देश में सिर्फ भारत स्टेज-4 वाहनों की ब्रिकी का नजीरी फैसला देते हुए अदालत ने साफ तौर पर कहा कि, कंपनियों के फायदे के लिए लोगों का स्वास्थ्य खतरे में नहीं डाला जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर अदालत के इस फैसले से वाहन कंपनियों को 12 हजार करोड़ की चपत लग रही है तो यह उनकी गलती है.
खंडपीठ ने बेलाग कहा कि लोगों की सेहत ज्यादा जरूरी है. कोर्ट के ऐसा कहने के पीछे ठोस दलील भी है. क्योंकि, कंपनियों को पाबंदियों का पता था, फिर भी उन्होंने तैयार माल की ब्रिकी करने के बजाय स्टॉक बढ़ाते रहे. अब ऐसा नहीं चलने वाला.
दरअसल, तमाम उपाय करने, समिति का गठन करने और सख्ती करने के बावजूद पर्यावरण में जैसा सुधार होना चाहिए था, वह होता नहीं दिख रहा है. इसके उलट हालात और ज्यादा संजीदा होते जा रहे हैं. बोस्टन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी दिल्ली में हर दिन प्रदूषण के चलते 8 लोगों की मौत होती है. वहीं एक अन्य रपट कहती है कि दिल्ली में हर तीसरा बच्चा फेफड़े की समस्या से ग्रस्त है. स्वाभाविक है, अदालत ने ऐसे कई बिंदुओं पर फैसले के पहले गंभीर विचार किया हो.
अब जबकि कम प्रदूषण उत्सर्जन वाले भारत स्टेज-4 वाहनों की ब्रिकी और रजिस्ट्रेशन का सख्त रुख आया है, उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने फायदे की जद्दोजहद में लगी ऑटोमोबाइल कंपनियां का दिल कुछ हद तक पसीजे. मगर हर जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ने की प्रवृत्ति से भी बचना होगा. प्रदूषण एक धीमा जहर है, सो इस समस्या को धीरे-धीरे ही खत्म किया जा सकता है.
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