कश्मीर में तनाव

Last Updated 30 Mar 2017 06:08:23 AM IST

कश्मीर घाटी में इन दिनों जिस तरह की आतंकवादी हिंसा, पत्थरबाजी, अराजकता, हताशा और उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है, इसे देखते हुए वहां से किसी अच्छी खबर नहीं बल्कि सिर्फ खूनखराबे और निराशाजनक खबरें ही आ सकती हैं.


कश्मीर में तनाव

बीते मंगलवार को मध्य कश्मीर के बड़गाम जिले में हिंसक प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ में तीन नागरिकों की मौत से यह साफ संकेत मिल रहे हैं कि पिछले साल की तरह ही हिंसक घटनाओं की शुरुआत हो चुकी है. पिछले दिनों सेनाध्यक्ष ने चेतावनी दी थी कि सेना के सर्च अभियान में बाधा डालने वालों और आतंकवादियों की सुरक्षा कवच बनने वालों से सेना कड़ाई से पेश आएगी.

अलगाववादी उनके इस बयान को तोड़-मरोड़कर पेश करके स्थानीय लोगों को भड़का रहे हैं. यह राज्य के साथ केंद्र सरकार के लिए भी सावधान हो जाने की घंटी है. इसीलिए सरकार को सख्ती करने के साथ ही संवाद स्थापित करने की प्रक्रिया भी तत्काल शुरू कर देनी चाहिए. कश्मीर में पिछले ढाई दशक से भी ज्यादा समय से जारी भीषण रक्तपात कब और कहां जाकर रु केगा, यह भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता?

अलबत्ता, एक बात पूरे दावे के साथ कही जा सकती है कि पत्थरबाज चाहे जितने पत्थर फेंक लें, आतंकवादी चाहे जितने निर्दोष नागरिकों और सुरक्षाबलों को निशाना बना लें, उन्हें सरकार जीतने नहीं देगी. कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसकी रक्षा के लिए सरकार किसी भी हद तक जा सकती है. कश्मीर समस्या को हल करने के दो ही रास्ते हैं. एक सीमा पर आतंकवादियों से कड़ाई से पेश आना और अलगाववादी कश्मीरियों के साथ शांतिपूर्ण संवाद को जारी रखना. सरकार इन दोनों रास्ते पर चलती रही है बावजूद इसके वहां स्थायी शांति कायम नहीं हो पा रही है और अंतत: कश्मीर में अमन-चैन चाहने वाले कश्मीरी नागरिकों को ही इसके दुष्परिणाम झेलने पड़ रहे हैं.

इसलिए कश्मीर के अलगाववादी तत्वों को समझने और समझाने की जरूरत है कि शांतिपूर्ण संवाद के जरिए ही किसी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है. और यह भी सच है कि भारत का लोकतंत्र उसके लिए ज्यादा मुफीद है. इसलिए अलगाववादियों को लोकतंत्र की मुख्यधारा में लौटकर सरकार के साथ वार्ता की मेज पर आना चाहिए. जब तक यह स्थिति नहीं कायम होगी तब तक तब तक कश्मीर में शांति बहाली के बारे में सोचना गलत होगा.



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