नकद चंदे की सीमा
यह खबर शायद आश्वस्तकारी है कि चुनाव आयोग ने सरकार के पास ऐसी सिफारिशें भेजी हैं, जिनसे खासकर चुनावों और हमारी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में धनबल के दबदबे पर कुछ अंकुश लगाया जा सकेगा.
नकद चंदे की सीमा |
एक खबर के मुताबिक चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय के पास ऐसी सिफारिश भेजी है कि राजनैतिक पार्टियों के लिए नकद चंदा संग्रह की सीमा 20 करोड़ रु. या कुल चंदे की रकम का 20 प्रतिशत, जो भी अधिक हो, तय की जाए. बाकी चंदे सिर्फ चेक के जरिए या ऑनलाइन भुगतान से हासिल किए जाएं, ताकि उनका हिसाब-किताब रहे. हाल के चुनावों में धनबल के इस्तेमाल के आरोप भी यही बताते हैं कि चुनावों को पारदर्शी बनाने और धनबल के इस्तेमाल को रोकने की सबसे अधिक दरकार है.
इसके पहले सरकार चुनाव आयोग की वह सिफारिश स्वीकार कर चुकी है और इस बार उसे बजट प्रस्तावों का हिस्सा बना चुकी है कि पार्टियों को कोई नकद चंदा महज 2,000 रु. तक ही दे सकता है. अभी तक यह रकम 20,000 रु. हुआ करती है और अमूमन पार्टियां 19,999 रु. के अज्ञात चंदे के जरिए अपने कुल चंदे को जायज ठहराती रही हैं.
एडीआर के एक अध्ययन के मुताबिक 2004-05 से 2014-15 के बीच राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टियों के कुल चंदे का करीब 69 प्रतिशत अज्ञात स्रेतों से था. इस अवधि में कांग्रेस को सबसे अधिक 3,982 करोड़ रु. चंदा हासिल हुआ और इसमें 83 प्रतिशत अज्ञात स्रोत से था. भाजपा ने उससे मामूली कम 3,272 करोड़ रु. चंदे में पाए और उसमें 65 प्रतिात अज्ञात स्रोत से हासिल किया गया था.
तीसरे नंबर पर इनसे काफी दूर माकपा रही, जिसे 893 करोड़ रु. का चंदा हासिल हुआ, जिसमें 53 प्रतिशत अज्ञात स्रेत से मिला था. जाहिर है, कुल नकद चंदे की सीमा बांधने का असर छोटी पार्टियों पर इसलिए पड़ सकता है कि उन्हें मोटे तौर पर चंदा नकदी में ही मिलता है. खासकर बसपा जैसी पार्टियां इससे सबसे अधिक प्रभावित हो सकती हैं, जो हिसाब-किताब रखने में ज्यादा यकीन नहीं करतीं. हालांकि पार्टियां हर सुधार का तोड़ भी निकाल लेती हैं. मसलन, उम्मीदवारों के चुनाव खर्च की सीमा बांधी गई तो पार्टियां बड़े खर्च खुद करने लगीं, जिस पर कोई सीमा नहीं है.
| Tweet |