मिलकर सुलझाएं रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मसला

Last Updated 22 Mar 2017 02:40:13 AM IST

अयोध्या में वर्षो से विवादित रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के मसले का हल तलाशने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का सुझाव कई मायनों में ऐतिहासिक और स्वागतयोग्य है.


मिलकर सुलझाएं

पहली अहम बात, यह है कि शीर्ष अदालत का यह मानना कि संबंधित पक्षों को आपस में बातचीत के जरिये इस संवेदनशील मसले का हल निकालने में समझदारी है. इसलिए कि आपसी वार्ता से समस्या के समाधान का जो फामरूला उभरकर सामने आएगा, वह सर्वमान्य ही होगा. दूसरी बात, चूंकि अदालत के फैसले बाध्यकारी होते हैं, लिहाजा उसके इस फैसले से इस बात की आशंका बनी रहेगी कि किसी भी पक्ष को यह लग सकता है कि उसके साथ न्याय नहीं हुआ है.

तीसरी बात, शीर्ष अदालत देश के करोड़ों नागरिकों की भावना और आस्था से जुड़े हुए इस अतिसंवेदनशील मसले का सर्वमान्य हल के साथ पटाक्षेप करना चाहता है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने व्यक्तिगत रुचि लेते हुए जरूरत पड़ने पर मध्यस्थता करने की भी पेशकश की है.

देश की आजादी के दो-तीन साल बाद से चले आ रहे इस विवाद को सुलझाने का इससे बेहतर विकल्प नहीं हो सकता. इसलिए इस मामले से संबंधित सभी पक्षों को सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को गंभीरता से लेते हुए इस पर अमल करने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. लेकिन जैसा कि पहले से ही होता आया है, सुप्रीम कोर्ट की यह राय आने के साथ ही इस मसले पर राजनीति शुरू हो गई है.

सरकार के साथ राष्ट्रीय मुस्लिम मंच ने अदालत की सलाह का स्वागत किया है. लेकिन बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के जफरयाब जिलानी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रुख सकारात्मक नहीं रहा. यह कोरी दार्शनिकता नहीं, व्यावहारिक बात है कि ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान न हो. आखिर दुनिया के बड़े-बड़े मसले भी बातचीत के जरिये ही सुलझाए जाते हैं. अलबत्ता यह जरूरी है कि इससे जुड़े सभी पक्ष अपने अड़ियल रुख छोड़ें.

अगर वह ऐसा करने का साहस दिखा पाए तो सचमुच सांप्रदायिक नफरत और हिंसा को जन्म देने वाले इस झगड़े का अंत हो सकेगा. देश-समाज का कल्याण इसी में निहित है. प्रदेश की योगी सरकार के लिए यह ऐतिहासिक दायित्व निभाने का अवसर है. उसे नाहक नहीं गंवाना चाहिए.



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