सांसदों को फटकार
आम तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कभी-कभार ही गुस्सा होते हैं. इस बार उनके क्रोधित होने की वजह खुद उन्हीं की पार्टी के सांसद हैं.
सांसदों को फटकार |
सदन में पार्टी सांसदों की लगातार गैरमौजूदगी से उनके सब्र का पैमाना छलक उठा. पिछले एक डेढ़ साल में तीसरी या चौथी बार प्रधानमंत्री को यह याद दिलाना पड़ा है कि सांसद अपना कर्तव्य समझें. संसद का कामकाज छोड़कर व्यक्तिगत रुचि में लगे रहने वाले भाजपा सांसदों के लिए यह आखिरी चेतावनी जैसा हो सकता है.
मोदी ने उन्हें स्पष्ट कर दिया है कि सत्र के वक्त वह किसी भी सांसद को कभी भी बुला सकते हैं. कुछ नाराज लहजे में उन्होंने यह भी याद दिला दिया कि सदन में मौजूदगी सांसदों का कर्तव्य है, और इसके लिए आग्रह करने की जरूरत नहीं है.
दरअसल, ऐसी घटना लगातार हो रही है. कोरम के अभाव में दोनों सदनों की कार्यवाही कई बार देर से शुरू होती है. प्रधानमंत्री चाहते हैं कि केंद्र सरकार की योजनाएं और नीतियों की जानकारी हर जनप्रतिनिधि को होनी चाहिए. पीएम को यह बखूबी अहसास है कि जनता तक यह संदेश कतई नहीं जाए कि जिन सांसदों को उन्होंने जिताकर भेजा है, उन्हें उनकी रत्ती भर की परवाह नहीं है. सांसदों के सदन से गायब रहने को नैतिकता की दृष्टि से भी अच्छा नहीं माना जाता है.
और जब बात ‘न्यू इंडिया’ की चल रही हो, तो यह जानना और समझना हर सांसद का कर्त्तव्य है कि सरकरी याजनाएं कौन-सा रूप ले रही हैं, या उन्हें जनता के बरक्स जब खड़ा होना होगा तो उनके पास केंद्रीय योजनाओं का पूरा ब्लू प्रिंट हो. वैसे, कमोबेश यह हर दल की समस्या है. चूंकि उत्तर प्रदेश में प्रचंड जीत के बाद मोदी ज्यादा ताकतवर हुए हैं. लिहाजा, वो चाहते हैं कि सांसदों-मंत्रियों में उनकी धमक पहले की तरह रहे.
वर्तमान सत्र में ही राज्य सभा में कई मंत्री अपने मंत्रालय से जुड़े पूरक सवालों का जवाब देने के लिए सदन में मौजूद नहीं थे. इस पर सभापति हामिद अंसारी ने अप्रसन्नता जताई थी. नियमत: होना भी यही चाहिए कि अगर सांसद या मंत्री सदन की कार्यवाही के दौरान अनुपस्थित रहते हैं, तो उन्हें एब्सेंट मान कर उन्हें दी गई सुविधाएं काट ली जाएं. हां, अगर सरकारी तौर पर भी नियम बनाकर इसका सख्ती से पालन हो तो हो सकता है आगे चलकर प्रधानमंत्री को सांसदों को डांटने की नौबत न आए.
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