प्रदूषण पर चिंता
दिल्ली और एनसीआर के तमाम शहरों में प्रदूषण की क्या स्थिति है, यह किसी से छुपा नहीं है.
प्रदूषण पर चिंता (फाइल फोटो) |
पिछले साल दिवाली के बाद जो भयानक परिदृश्य उभरा था, उसने कई स्तर पर सरकार और पर्यावरणविदों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया था. तमाम कवायदों के बाद मामला देश की शीर्ष अदालत तक पहुंचा. फिर केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने दीर्घकालीन योजनाओं को लागू करने के लिए पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकारण (ईपीसीए) के गठन किया गया.
अदालत ने केंद्र से तत्काल सख्त कदम उठाने को कहा. यानी प्रदूषण को लेकर जो डर और आशंका थी, उसे दूर करने के उपाय ढूंढे जाने लगे. यह सच है, कि देश खासकर राजधानी दिल्ली और एनसीआर के इलाके प्रदूषण की भारी मार झेल रहे हैं. तमाम शोध और पर्यावरणविदों के अध्ययन भी आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरे का इशारा कर रहे हैं. ऐसे में सरकार के लिए \'गैस चेंबर\' में जनता को घुट-घुटकर मरने देने से बेहतर है कि कुछ ठोस उपाय निकाले जाएं.
दिल्ली और आसपास की जनता ने प्रदूषण का दंश इस सर्दी में तो झेल लिया लेकिन आगे से ऐसा न हो; इसके वास्ते अदालत से लेकर प्रदूषण कम करने के संस्थानों की जिम्मेदारी बढ़ गई है. इस मुहिम में सबसे पहले दिल्ली में 20 नये मॉनिटरिंग स्टेशन लगाए जाएंगे. पीएम 2.5 को मार्कर पॉल्यूटेंट बनाकर इसके सभी स्रोतों को रोकने के लिए जरूरी काम राज्य कर रहे हैं. चूंकि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पीएम 2.5 की ज्यादा समस्या है, इसलिए इसकी रोकथाम के लिए राज्यों को आवश्यक दिशा-निर्देश दे रहे हैं.
लाजिमी है, चौतरफा काम के बूते ही प्रदूषण को कम किया जा सकता है. जिस संजीदगी से प्रदूषण पर वार करने के नियम-कानून बनाए गए हैं, उस पर ईमानदारी से अमल ही परेशानियों को आधा कर देगा. बिना सख्ती और जागरूरकता के अभियान परवान नहीं चढ़ सकता.
खुशी की बात है कि देर से ही सही हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली ने आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए एकुटता दिखाई है. सतही प्रयासों की वजह से ही देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट आज ज्यादा गंभीर है. समझदारी इसी में है कि प्रदूषण को मौत की वजह नहीं बनने दिया जाए. अभी तक की कोशिशें ऐसे ही सुखद संकेत दे रहे हैं.
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