VIDEO: डॉ. रवींद्र कोटनाला ने किया कमाल, अब टार्च, लालटेन में लगाएं पानी से बनी बैट्री
पानी से सीधे बिजली बनाने की कल्पना साकार हो गई है. पूरी दुनिया में पिछले 70 सालों से पानी को बिजली का प्रत्यक्ष संसाधन बनाने की कोशिश हो रही है.
![]() डॉ. रवींद्र कुमार कोटनाला अपनी शोध सहयोगी डॉ. ज्योति शाह के साथ |
इसमें अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक डॉ. रवींद्र कुमार कोटनाला ने बाजी मार ली है. उन्होंने पानी से बिजली बनाने की विधि का अन्वेषण कर दिया है. उनके इस खोज को अमेरिका और भारत दोनों में पेंटेट मिल गया है.
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की नेशनल फिजिकल लैबोरिटी (एनपीएल) के मुख्य वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. कोटनाला ने अपने शोध सहयोगी डॉ.
ज्योति शाह के साथ मिलकर यह उपलब्धि हासिल की है.
डॉ. कोटनाला कहते हैं, ‘इस उपलब्धि को हासिल करने में 13 साल का समय बीत गया.’ वह कहते हैं कि पिछले 25 सालों के अनुसंधान के दौरान उन्होंने करीब 355 रिसर्च पेपर प्रकाशित किए हैं, लेकिन यह उपलब्धि खास है. क्योंकि पूरी दुनिया के वैज्ञानिक पानी से बिजली बनाने के लिए शोध कर रहे हैं.
दरअसल, जीवाश्म ईधन यानी पेट्रोलियम पदार्थ और कोयला जल्दी ही खत्म हो जाने वाले हैं. आईपीसीसी ने जलवायु परिवर्तन पर जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जीवाश्म ईधन की बढ़ती मांग और क्लाइमेट चेंज के प्रभावों के कारण ये संसाधन खत्म हो जाएंगे.
हमें कुछ समय परमाणु ऊर्जा और फिर सौर ऊर्जा पर निर्भर रहना होगा. जीवाश्म ऊर्जा से पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुंच रहा है. जबकि सौर ऊर्जा महंगी है जगह घेरने वाली है.
ईधन की जगह है पानी
मैग्नीशियम फेराइट में लगी सिलवर की सर्किट को टार्च, लैंप, लालटेन कहीं भी लगाया जा सकता है. उसमें ईधन की जहग पानी भरना है और बिजली तैयार. अब टार्च में जो बैट्री लगती है वह पर्यावरण के लिए खतरनाक होती है, जबकि पानी से चलने वाली बैट्री में कुछ भी नुकसानदायक नहीं है. अभी एक वोल्ट की बिजली वाली बैट्री की कीमत का अनुमान 17 रुपए लगाया गया है, यदि इसका व्यवसायीकरण होगा तो फिर रेट स्वत: ही कम हो जाएगी. इस विधि का बाजार में लाने और व्यवसायिक उपयोग पर डॉ. कोटनाला बताते हैं कि अभी उनका अनुसंधान जारी है. वह इस विधि को फूलप्रूफ बनाना चाहते हैं. उसके बाद बाजार में लाने के बारे में विचार किया जाएगा.
बहुत सस्ती है विधि
डॉ. कोटनाला ने पानी बनाने की विधि बहुत ही सरल और सस्ती पूरी तरह से भारतीय बनाई है. इंटरनेशनल जरनल ऑफ इनर्जी र्सिच में प्रकाशित डॉ. कोटनाला और डॉ. ज्योति शाह का रिसर्च पेपर ग्रीन हाइड्रोइलैट्रिक एनर्जी सोर्स ऑन वाटर डिसोसिएशन बाइ मोनोपोरस फेराइट नाम से छपा था.
इस विधि में उन्होंने मैग्नीशियम फेराइट (एक पदार्थ जिसमें पानी की बूंदें धीरे-धीरे रिसती हैं, देशी भाषा में जैसे मिट्टी के बरतन पानी सोखता है) नैनोपोरस है. मैग्नीशियम फेराइट में पानी की बूदों का पृथकीकरण होता है और वह जब सिल्वर की बनी सर्किट में पहुंचता है तो बिजली पैदा कर देता. डॉ. कोटनाला बताते हैं कि शुरुआत में केवल 17 सेकेंड की ही बिजली बन पाती थी, लेकिन अब उन्होंने 36 घंटे तक की बिजली बना दी है.
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