रासायनिक उर्वरक से मनुष्य में छह गुना बढ़ता है कैंसर का खतरा

Last Updated 25 Sep 2016 01:48:51 PM IST

रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अवैज्ञानिक उपयोग से पर्यावरण को तो भारी नुकसान पहुंचता ही है, इससे पशुओं में बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है और मनुष्य में कैंसर से प्रभावित होने की आशंका छह गुना से अधिक बढ जाती है.


(फाइल फोटो)

संश्लेषित उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग ने पर्यावरण को बहुत अधिक हानि हो रही है और अप्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन पर प्रभाव पर रहा है. रासायनिक उर्वरकों के कारण मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आने के साथ ही फसलों का उत्पादन भी कम हुआ है. इसके कारण पशु स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है.
      
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि उर्वरकों में भारी धातुएं होती हैं जिनमें सिल्वर, निकिल, सेलेनियम, थैलियम, वनेडियम, पारा , सीसा , कैडमियम और यूरेनियम शामिल हैं जो सीधे मानव स्वास्थ्य के खतरों से जुड़ी  हैं। इनसे वृक्क, फेफड़े और यकृत में कई प्रकार की बीमारियां हो सकती है. उर्वरकों के कारण मस्तिष्क कैंसर, प्रोस्टेट ग्रंथि कैंसर, बड़ी आंत के कैंसर, लिम्फोमा और श्वेत रक्त कण की कमी का खतरा छह गुना से अधिक बढ जाता है.



रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से नाइट्रस आक्साइड गैस बनती है जो एक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस है जिससे तापमान में वृद्धि होती है. कृषि मृदा से कुल प्रत्यक्ष उर्त्सजित नाइट्रस आक्साइड में उर्वरकों का हिस्सा 77 प्रतिशत है. अत्यधिक नाइट्रोजन वाले उर्वरकों के प्रयोग के कारण भू जल में नाइट्रोजन प्रदूषण की समस्या भी बढी है. पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, और आन्ध्र प्रदेश के भू-जल में नाइट्रेट प्रदूषण की मा मान्य स्तर से अधिक पायी गयी है. पेयजल में 10 मिलीग्राम एनओ 2 एन:एल सुरक्षित स्तर माना गया है.     
      
अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग का ताजा उदाहरण कृषि प्रधान राज्य पंजाब और हरियाणा का है वर्ष 2013.14 के आकड़ें के अनुसार पंजाब में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश के प्रयोग का अनुपात क्रमश: 56.8, 13.5 और एक का था जबकि हरियाणा में यह 64,12.8 और एक था जबकि वैज्ञानिक अनुपात 4, 2, 1 है. देश के विभिन्न हिस्सों की मिट्टी में 89 प्रतिशत नाइट्रोजन, 80 प्रतिशत फास्फोरस, 50 प्रतिशत पोटाशियम, 41 प्रतिशत सल्फर, 49 प्रतिशत जिंक और 33 प्रतिशत बोरोन की कमी है.
       
वैज्ञानिकों का मानना है कि किसान जब फसल में यूरिया का उपयोग करते हैं तो उसका एक तिहाई हिस्सा भाप बनकर उड़ जाता है, एक तिहाई पानी के साथ बह जाता है और केवल एक तिहाई हिस्से का ही पौधा उपयोग कर पाता है.

आईएएनएस


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