अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों को हृदयरोग से मौत का खतरा ज्यादा
एक नए शोध में पता चला है कि सफल रहे अपोलो अंतरिक्ष कार्यक्रम के सदस्यों को हृदयरोग का खतरा ज्यादा है. इसकी वजह अंतरिक्ष की गहन विकिरणों से सामना होना माना गया है.
फाइल फोटो |
फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल डेल्प ने बताया कि चंद्र अभियानों में शामिल जो भी व्यक्ति गहन अंतरिक्ष में जाता है उसे आकाशगंगा से निकलने वाली अंतरिक्ष किरणों का सामना करना पड़ता है. इन विकिरणों का सामना किसी और अंतरिक्ष यात्री को नहीं करना पड़ता. शोधकर्ताओं के मुताबिक, हृदय संबंधी समस्याओं की जड़ यही किरणों होती हैं.
डेल्प ने कहा, ‘मानव जीवन खासकर हृदय संबंधी प्रणाली पर गहन अंतरिक्ष की विकिरणों का क्या असर पड़ता है फिलहाल उसके बारे में हमें बहुत कम जानकारी है. हालांकि मानवों पर इसके दुष्प्रभाव की शुरुआती जानकारी तो हमें मिल ही गई है.’ यह पहला शोध है जिसमें अपोलो के यात्रियों की मौत के कारणों पर ध्यान दिया गया है.
अपोलो कार्यक्रम 1961 से 1972 तक चला था और इसमें 1968 से 1972 के बीच 11 विमान ऐसे थे जिसमें इंसान भी गए थे. इसमें से नौ धरती की कक्षा से बाहर गहन अंतरिक्ष में भेजे गए थे.
यह कार्यक्रम इसलिए खास था क्योंकि इसी के चलते मानव ने चांद पर कदम रखा था. अपोलो 13 का अभियान असफल था और इस पर 1995 में रॉन हॉर्वर्ड ने फिल्म भी बनाई थी. डेप्ल का शोध इस मायने में महत्वपूर्ण है कि अब अमेरिका और अन्य देश तथा निजी संगठन भी गहन अंतरिक्ष यात्रा की योजना बना रहे हैं.
शोध में डेल्प ने पाया है कि अपोलो के यात्रियों में से 43 फीसदी की मौत हृदय संबंधी रोगों के कारण हुई है. यह आंकड़ा उन अंतरिक्ष यात्रियों के मुकाबले पांच गुना है जो धरती की निचली कक्षा तक ही यात्रा पर गए थे.
अपोलो चंद्र अभियानों पर गहन अंतरिक्ष में गए 24 यात्रियों में से आठ की मौत हो चुकी है और उनमें से सात को इस शोध में शामिल किया गया है.
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